उत्सर्जन - Utsarjan - Emission

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उत्सर्जन

  उत्सर्जन के प्रकार:

    1. अमोनोटेलिक उत्सर्जन :

    2. यूरियोटेलिक उत्सर्जन :

    3. यूरिकोटेलिक उत्सर्जन :

वृक्क (Kidney)


उत्सर्जन

शरीर में कार्बोहाइड्रेट तथा वसा के उपापचय से कार्बन डाइआॅक्साइड तथा जलवाष्प का निर्माण होता है।

प्रोटीन के उपापचय से नाइट्रोजन जैसे उत्सर्जी पदार्थों का निर्माण होता है। जैसे- अमोनिया, यूरिया तथा यूरिक अम्ल।

कार्बन डाइआॅक्साइड जैसे उत्सर्जी पदार्थों को फेफड़ों के द्वारा शरीर से बाहर निकाला जाता है।

सोडियम क्लोराइड जैसे उत्सर्जी पदार्थ त्वचा के द्वारा शरीर के बाहर निकाले जाते हैं।

यूरिया जैसे उत्सर्जी पदार्थ वृक्क के द्वारा शरीर के बाहर निकाले जाते हैं।

उत्सर्जन के प्रकार:

उत्सर्जन के तीन प्रकार होते हैं-

1. अमोनोटेलिक उत्सर्जन : 

इस प्रकार के उत्सर्जन में उत्सर्जी पदार्थ के रूप में अमोनिया को शरीर से बाहर निकाला जाता है। इस प्रकार का उत्सर्जन जिन जन्तुओं में पाया जाता है उन्हें अमोनोटेलिक जन्तु कहा जाता है। इस प्रकार के उत्सर्जी पदार्थ को निकालने के लिए सबसे अधिक जल की आवश्यकता होती है। अमोनिया को सर्वाधिक विषैला उत्सर्जी पदार्थ माना जाता है। इस प्रकार का उत्सर्जन जलीय जन्तुओं में पाया जाता है।

2. यूरियोटेलिक उत्सर्जन :

इस प्रकार के उत्सर्जन में उत्सर्जी पदार्थ के रूप में यूरिया को शरीर से बाहर निकाला जाता है। कुछ उभयचर वर्ग तथा स्तनधारी वर्ग के जन्तुओं में इस प्रकार का उत्सर्जन पाया जाता है। जैसे- मेढ़क, मनुष्य, हिरन, खरगोश आदि।

3. यूरिकोटेलिक उत्सर्जन : 

इस प्रकार के उत्सर्जन में उत्सर्जी के पदार्थ के रूप में यूरिक अम्ल का निर्माण होता है। यूरिक अम्ल को उत्सर्जित करने के लिए सबसे कम जल की आवश्यकता होती है क्योंकि ये सबसे कम विषैला उत्सर्जी पदार्थ होता है। इस प्रकार का उत्सर्जन पक्षी वर्ग तथा सरीसृप वर्ग के जन्तुओं में पाया जाता है। जैसे- कबूतर, मोर, सर्प, मगरमच्छ, कछुआ आदि।

वृक्क (Kidney)

हमारे शरीर का सर्वप्रमुख उत्सर्जी अंग ‘वृक्क’ है। वृक्क की इकाई ‘नेफ्रान’ (Nephron) है। ‘नेफ्रान’ में मूत्र (Urine) का निर्माण होता है। मूत्र का संग्रहण ‘मूत्राशय’ (Urinary Bladder) में होता है। मूत्र में 95ः जल तथा शेष यूरिया, यूरिक अम्ल, क्रिएटिनीन, हिप्यूरिक अम्ल, साधारण लवण इत्यादि होते हैं। मूत्र में जल के बाद सर्वाधिक मात्रा यूरिक की होती है। मूत्र का पीला रंग ‘क्रिएटिनीन’ (Creatinine) के कारण होता है। मूत्र का निर्माण सामान्य यमनुष्य में 24 घंटे में लगभग 100 लीटर होता है, लेकिन अन्तिम रूप से 11/2 लीटर ही मूत्र का उत्सर्जन होता है। शेष जल का पुनः अवशोषण हो जाता है। वृक्क के कार्य न करने पर ‘डायलिसिस’ (Dialisis) का उपयोग किया जाता है। मूत्र का निष्पंदन (Filtration) ‘बाऊमैन सम्पुट’ (Bowmann (एक वैज्ञानिक का नाम) Capsul) में होता है।

मनुष्य में दो वृक्क पाये जाते हैं जिन्हें दायां और बायां वृक्क कहा जाता है।

मनुष्य के वृक्क का भार लगभग 300 से 350 ग्राम होता है।

वृक्क के द्वारा छाने गये मूत्र में सबसे अधिक मात्रा में जल पाया जाता है जबकि कार्बनिक पदार्थ के रूप में सर्वाधिक यूरिया पायी जाती है।

मूत्र का पीला रंग यूरोक्रोम पदार्थ की उपस्थिति के कारण होता है।

मूत्र का pH मान 6 होता है। अर्थात मूत्र अम्लीय प्रकृति का होता है।

मनुष्य के मूत्र के द्वारा विटामिन सी शरीर के बाहर निकाली जाती है।

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