श्वसन-तन्त्र
श्वसन (Respiration)
ग्लूकोज़ के आक्सीकरण के द्वारा उत्पन्न ऊर्जा को श्वसन कहा जाता है। श्वसन जीवों में 24 घण्टे चलने वाली क्रिया है।
श्वसन के प्रकार :-
श्वसन दो प्रकार होते हैं जिन्हें क्रमशः आॅक्सी और अनाॅक्सी श्वसन कहा जाता है।
आॅक्सी श्वसन (Aerobic Respiration)
आॅक्सीजन की उपस्थिति में ग्लूकोज का पूर्ण जारण आॅक्सी श्वसन कहलाता है। आॅक्सी श्वसन की क्रिया में 38 ATP के रूप में ऊर्जा का उत्पादन होता है।
आॅक्सी श्वसन की क्रिया कोशिका के कोशिका द्रव्य और माइटोकाॅड्रिया के अन्दर सम्पन्न होती है।
कोशिका द्रव्य में ग्लाइकोलिसिस क्रिया के द्वारा ग्लूकोज़ पायरविक अम्ल में तोड़ा जाता है। इस विखण्डन के दौरान 2 ATP के रूप में ऊर्जा का उत्पादन होता है।
ग्लाइकोलिसिस क्रिया को आॅक्सी और अनाॅक्सी श्वसन का काॅमन स्टेप माना जाता है।
क्रेब्स चक्र की क्रिय माॅइटोकाॅड्रिया के अन्दर सम्पन्न होती है। क्रेब्स चक्र के दौरान पायरविक अम्ल कार्बन डाइआॅक्साइड और जल में विखण्डित हो जाता है।
इस विखण्डन के दौरान 36 ATP के रूप में ऊर्जा का उत्पादन होता है।
पायरविक अम्ल का विखण्डन आॅक्सीजन की उपस्थिति और अनुपस्थिति दोनों में होता है।
जब मनुष्य अधिक कार्य करता है तो मांसपेशियों में आॅक्सीजन के अभाव में पायरविक अम्ल का विखण्डन लैक्टिक अम्ल और कार्बन डाइआॅक्साइड में हो जाता है।
लैक्टिक अम्ल के जमाव के कारण मांसपेशियों में दर्द होता है।
मांसपेशियों में दर्द का कारण सम्बन्धित कोशिकाओं में ऊर्जा की कमी को भी माना जाता है क्योंकि अनाॅक्सी श्वसन की क्रिया में 2 ATP के रूप में ऊर्जा का उत्पादन होता है।
जब अनाॅक्सी श्वसन की क्रिया जीवाणु और कवक में होती है तो इसे किण्डवन (Fermentation) कहा जाता है।
किण्डवन क्रिया के द्वारा शराब तथा सिरके का निर्माण होता है।
श्वासच्छोसवास (Breating):
सामान्यतः सास लेने की क्रिया को श्वासच्छोसवास कहा जाता है। इस क्रिया में ऊर्जा का उत्पादन नहीं होता है।
वायुमण्डलीय आॅक्सीजन का फेफडों में ग्रहण करना और शरीर के विभिन्न भागों से आयी हुई कार्बन डाइआॅक्साइड गैस को वायुमंडल में मुक्त करने की क्रिया को श्वासच्छोसवास कहा जाता है।
श्वसन क्रिया की शुरूआत ‘डायफ्राग्म’ ( Diaphragm) के क्रियाशील होने से होती है।
श्वसन के दौरान सर्वाधिक मात्रा में नाइट्रोजन गैस 78% ग्रहण की जाती है और सबसे ज्यादा नाइट्रोजन 78% ही छोड़ी जाती है।
आॅक्सीजन 21% ग्रहण की जाती है तथा 16% छोड़ी जाती है।
कार्बन डाई आॅक्साइड .03% (वातावरण में भी इतनी ही मात्रा में है) ग्रहण की जाती है तथा 4% छोड़ी जाती है।
गहरी साँस लेने पर 3 ½ लीटर गैस ग्रहण की जाती है, इस क्षमता को ‘वाइटल क्षमता’ (Vital Capacity) कहते हैं। सामान्य साँस में ½ लीटर गैस ग्रहण की जाती है, जिसे ‘टाइडल क्षमता’ (Tidal Capacity) कहते हैं।
1½ लीटर गैस फेफड़ों में प्रत्येक दशा में बनी रहती है जिसे ‘रेसीडुअल क्षमता’ (Residual Capacity) कहते हैं। फेफड़े की गैस-धारण की अधिकतम क्षमता 5 लीटर है।
आॅक्सीजन का ग्रहण एवं कार्बन डाई आॅक्साइड का उत्सर्जन ‘हीमोग्लोबिन’ की मात्रा पर निर्भर होता है।
गैसों का विनिमय परासरण (Diffusion) क्रिया द्वारा होता है।
कोशिकीय श्वसन कोशिकाओं के अन्दर 2 चक्रों-ग्लाइकोलिसिस एवं क्रेव के माध्यम से पूरा होता है और कार्बनडाई आॅक्साइड तथा जल का निर्माण होता है।
आॅक्सीजन की अनुपस्थिति में अनाक्सीश्वसन होता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट के अपघटन के फलस्वरूप एथिल अल्कोहल और जल का निर्माण होता है।
अधिक परिरम करने पर ‘लैक्टिक एसिड’ का निर्माण होता है, जिससे थकान महसूस होती है।
कार्बन डाई आॅक्साइड का संवहन मुख्यतया बाई कार्बोनेट आयन (HCO3–)के रूप में होता है।
हीमोग्लोबिन की अनुपस्थिति में भी रूधिर 2% आॅक्सीजन का आदान-प्रदान कर सकता है।
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