लिंग का बच्चों के जीवन के अनुभवों का प्रभाव - Impact of gender on the development of children or life experience of children
लिंग की अवधारणा
लिंग एक ऐसी अवधारणा है जिसे जैविकीय योन भेद माना जाता था लेकिन विगत कुछ वर्षो में समाज विज्ञानों में लिंग के सामाजिक पक्षों को उजागर करने का प्रयास किया गया है और उसे लिंग के जैवकीय पक्ष से अधिक महत्वपूर्ण समझा जाने लगा है| 1970 के लगभग सभी समाज शास्त्रियों एवं मनोवैज्ञानिकों ने इसके अध्ययन में दिलचस्पी लेनी शुरू की| उनके अध्ययन ने यह साबित किया कि भारतीय संस्कृति में लिंग भेद स्त्रियों एवं पुरुषों की भूमिका में संस्कृति के आधार पर काफी भिन्नता है और स्त्री एवं पुरुष के बीच काम के वितरण में भी असमानता पाई जाती है| समाज शास्त्रियों ने इसे सामाजिक समस्या के रूप में इन्हें उभारा और पुरुष तथा स्त्रियों के बीच असमानता को अपने अध्ययन का विषय बनाया और इन पर शोध की जाने लगी|
सर्वप्रथम 1972 में समाजशास्त्री ने अपनी एक पुस्तक सेक्स जेंडर एंड सोसाइटी (sex, gender and society) में सेक्स शब्द की महत्ता का वर्णन किया| उनके अनुसार सेक्स अर्थात स्त्री एवं पुरुष की जैवकीय विभाजन तथा जेंडर का अर्थ स्त्रीत्व और पुरुष के रूप में समानांतर और सामाजिक रुप से असमान विभाजन है| अर्थात जेंडर स्त्री एवं पुरुषों के बीच सामाजिक रूप से भिन्नता के पहलुओं पर ध्यान आकर्षित करती है|
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