प्रमुख एकार्थक शब्द - Pramukh Ekarthak Shabd

यहाँ कुछ प्रमुख एकार्थक शब्द दिया जा रहा है।

अहंकार- मन का गर्व। झूठे अपनेपन का बोध। 

दर्प- नियम के विरुद्ध काम करने पर भी घमण्ड करना। 

अभिमान- प्रतिष्ठा में अपने को बड़ा और दूसरे को छोटा समझना। 

घमण्ड- सभी स्थितियों में अपने को बड़ा और दूसरे को हीन समझना। 

अनुग्रह- कृपा। किसी छोटे से प्रसत्र होकर उसका कुछ उपकार या भलाई करना। 

अनुकम्पा- बहुत कृपा। किसी के दुःख से दुखी होकर उसपर की गयी दया। 

अनुरोध- अनुरोध बराबरवालों से किया जाता है। 

प्रार्थना- ईश्र्वर या अपने से बड़ों के प्रति इच्छापूर्ति के लिए प्रार्थना की जाती है। 

अस्त्र- वह हथियार, जो फेंककर चलाया जाता है। जैसे - तीर, बर्छी आदि। 

शस्त्र- वह हथियार जो हाथ में थामकर चलाया जाता है। जैसे - तलवार। 

अपराध- सामाजिक कानून का उल्लंघन अपराध है। जैसे - हत्या। 

पाप- नैतिक नियमों का उल्लंघन 'पाप' है। जैसे - झूठ बोलना। 

अवस्था- जीवन के कुछ बीते हुए काल या स्थिति को 'अवस्था' कहते है। जैसे - आपकी अवस्था क्या होगी ? रोगी की अवस्था कैसी है ?

आयु- सम्पूर्ण जीवन की अवधि को 'आयु' कहते है। जैसे - आप दीर्घायु हों। आपकी आयु लम्बी हो। 

अपयश- स्थायी रूप से दोषी होना। 

कलंक- कुसंगति के कारण चरित्र पर दोष लगाना। 

अधिक-आवश्यकता से ज्यादा। जैसे - बाढ़ में गंगा में जल अधिक हो जाता है। 

काफी- आवश्यकता से अधिक। जैसे - गर्मी में भी गंगा में काफी पानी रहता है। 

अनुराग- किसी विषय या व्यक्ति पर शुद्धभाव से मन केन्द्रित करना। 

आसक्ति- मोहजनित प्रेम को 'आसक्ति' कहते है। 

अन्तःकरण- विशुद्ध मन की विवेकपूर्ण शक्ति। 

आत्मा- जीवों में चेतन, अतीन्द्रिय और अभौतिक तत्व, जिसका कभी नाश नहीं होता। 

अध्यक्ष- किसी गोष्ठी, समिति, परिषद् या संस्था के स्थायी प्रधान को अध्यक्ष कहते है। 

सभापति- किसी आयोजित बड़ी अस्थायी सभा के प्रधान को 'सभापति' कहते है। 

अर्चना- धूप, दीप, फूल, इत्यादि, से देवता की पूजा। 

अभिनन्दन- किसी श्रेष्ठ का मान या स्वागत। 

स्वागत- अपनी सभ्यता और प्रथा के वश किसी को सम्मान देना। 

आदि- साधारणतः एक या दो उदाहरण के बाद 'आदि' का प्रयोग होता है। 

इत्यादि- साधारणतः दो से अधिक उदाहरण के बाद 'इत्यादि' का प्रयोग होता है। 

आज्ञा-आदरणीय या पूज्य व्यक्ति द्वारा किया गया कार्यनिर्देश। जैसे - पिताजी की आज्ञा है कि मैं धूप में बाहर न जाऊँ। 

आदेश- किसी अधिकारी व्यक्ति द्वारा दिया गया कार्यनिर्देश। जैसे - जिलाधीश का आदेश है कि नगर में सर्वत्र शान्ति बनी रहे। 

आदरणीय- अपने से बड़ों या महान् व्यक्तियों के प्रति सम्मानसूचक शब्द। 

पूजनीय- पिता, गुरु या महापुरुषों के प्रति सम्मानसूचक शब्द। 

इच्छा- किसी भी वस्तु की साधारण चाह। 

अभिलाषा- किसी विशेष वस्तु की हार्दिक इच्छा। 

उत्साह- काम करने की बढ़ती हुई रुचि। 

साहस- भय पर विजय प्राप्त करना। 

कष्ट- आभाव या असमर्थता के कारण मानसिक और शारीरिक कष्ट होता है। 

क्लेश- यह मानसिक अप्रिय भावों या अवस्थाओं का सूचक है।

पीड़ा- रोग-चोट आदि के कारण शारीरिक 'पीड़ा' होती है। 

कृपा- दूसरे के कष्ट दूर करने की साधरण चेष्टा। 

दया- दूसरे के दुःख को दूर करने की स्वाभाविक इच्छा। 

कंगाल-जिसे पेट पालने के लिए भीख माँगनी पड़े। 

दीन- निर्धनता के कारण जो दयापात्र हो चुका है। 

खेद- किसी गलती पर दुःखी होना। जैसे - मुझे खेद है कि मैं समय पर न पहुँच सका। 

शोक- किसी की मृत्यु पर दुःखी होना। जैसे - गाँधी की मृत्यु से सर्वत्र शोक छा गया। 

क्षोभ- सफलता न मिलने या असामाजिक स्थिति पर दुखी होना। 

दुःख- साधारण कष्ट या मानसिक पीड़ा। 

ग्रन्थ-इससे पुस्तक के आकर की गुरुता और विषय के गाम्भीर्य का बोध होता है। 

पुस्तक- साधारणतः सभी प्रकार की छपी किताब को 'पुस्तक' कहते है।

दक्ष-जो हाथ से किए जानेवाले काम अच्छी तरह और जल्दी करता है। जैसे - वह कपड़ा सीने में दक्ष है।

निपुण-जो अपने कार्य या विषय का पूरा-पूरा ज्ञान प्राप्त कर उसका अच्छा जानकार बन चुका है।

कुशल- जो हर काम में मानसिक तथा शारीरिक शक्तियों का अच्छा प्रयोग करना जानता है।

कर्मठ- जिस काम पर लगाया जाय उसपर लगा रहनेवाला।

निबन्ध- ऐसी गद्यरचना, जिसमें विषय गौण हो और लेखक का व्यक्तित्व और उसकी शैली प्रधान हो।

लेख- ऐसी गद्यरचना, जिसमें वस्तु या विषय की प्रधानता हो।

निधन- महान् और लोकप्रिय व्यक्ति की मृत्यु को 'निधन' कहा जाता है।

मृत्यु- सामान्य शरीरान्त को 'मृत्यु' कहते है।

निकट- सामीप्य का बोध। जैसे - मेरे गाँव के निकट एक स्कूल है।

पास- अधिकार के सामीप्य का बोध। जैसे - धनिकों के पास पर्याप्त धन है।

प्रेम- व्यापक अर्थ में प्रयुक्त होता है। जैसे - ईश्र्वर से प्रेम, स्त्री से प्रेम आदि।

स्त्रेह- अपने से छोटों के प्रति 'स्त्रेह' होता है। जैसे - पुत्र से स्त्रेह।

प्रणय- सख्यभावमिश्रित अनुराग। जैसे- राधा-माधव का प्रणय।

प्रणाम- बड़ों को 'प्रणाम' किया जाता है।

नमस्कार- बराबरवालों को 'नमस्कार' या 'नमस्ते' किया जाता है।

पारितोषिक- किसी प्रतियोगिता में विजयी होने पर पारितोषिक दिया जाता है।

पुरस्कार- किसी व्यक्ति के अच्छे काम या सेवा से प्रसत्र होकर 'पुरस्कार' दिया जाता है।

पति-किसी की विवाहिता स्त्री।

महिला- भले घर की स्त्री।

स्त्री- कोई भी औरत।

पुत्र- अपना बेटा।

बालक- कोई भी लड़का।

बड़ा- आकार का बोधक। जैसे- हमारा मकान बड़ा है।

बहुत- परिमाण का बोधक। जैसे - आज उसने बहुत खाया।

बुद्धि- कर्तव्य का निश्रय करती है।

ज्ञान- इन्द्रियों द्वारा प्राप्त हर अनुभव।

बहुमूल्य- बहुत कीमती वस्तु, पर जिसका मूल्य-निर्धारण किया जा सके।

अमूल्य- जिसका मूल्य न लगाया जा सके।

मित्र- वह पराया व्यक्ति, जिसके साथ आत्मीयता हो।

बन्धु- आत्मीय मित्र। सम्बन्धी।

मन- मन में संकल्प-विकल्प होता है।

चित्त- चित्त में बातों का स्मरण-विस्मरण होता है।

महाशय- सामान्य लोगों के लिए 'महाशय' का प्रयोग होता है।

महोदय- अपने से बड़ों को या अधिकारियों को 'महोदय' लिखा जाता है।

यातना- आघात में उत्पत्र कष्टों की अनुभूति (शारीरिक)।

विश्र्वास- सामने हुई बात पर भरोसा करना, बिलकुल ठीक मानना।

विषाद- अतिशय दुःखी होने के कारण किंकर्तव्यविमूढ़ होना।

व्यथा- किसी आघात के कारण मानसिक अथवा शारीरिक कष्ट या पीड़ा।

सेवा- गुरुजनों की टहल।

शुश्रूषा- दीन-दुखियों और रोगियों की सेवा।

साधारण- जो वस्तु या व्यक्ति एक ही आधार पर आश्रित हो। जिसमें कोई विशिष्ट गुण या चमत्कार न हो।

सामान्य- जो बात दो अथवा कई वस्तुओं तथा व्यक्तियों आदि में समान रूप से पायी जाती हो, उसे 'सामान्य' कहते है। 

स्वतंत्रता'स्वतंत्रता' का प्रयोग व्यक्तियों के लिए होता है। जैसे - भारतीयों को स्वतंत्रता मिली है।

स्वाधीनता- 'स्वाधीनता' देश या राष्ट के लिए प्रयुक्त होती है।

सखा- जो आपस में एकप्राण, एकमन, किन्तु दो शरीर है।

सुहृद्- अच्छा हृदय रखनेवाला।

सहानुभूति- दूसरे के दुःख को अपना दुःख समझना।

स्त्रेह-छोटों के प्रति प्रेमभाव रखना।

सम्राट- राजाओं का राजा।

राजा-एक साधारण भूपति।

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