समास की परिभाषा और भेद - Samaas ki Paribhaasha aur Bhed

 

समास (Compound) की परिभाषा-

अनेक शब्दों को संक्षिप्त करके नए शब्द बनाने की प्रक्रिया समास कहलाती है। 
दूसरे अर्थ में- कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक अर्थ प्रकट करना 'समास' कहलाता है।

अथवा,

दो या अधिक शब्दों (पदों) का परस्पर संबद्ध बतानेवाले शब्दों अथवा प्रत्ययों का लोप होने पर उन दो या अधिक शब्दों से जो एक स्वतन्त्र शब्द बनता है, उस शब्द को सामासिक शब्द कहते है और उन दो या अधिक शब्दों का जो संयोग होता है, वह समास कहलाता है।

  समास में कम-से-कम दो पदों का योग होता है।

  वे दो या अधिक पद एक पद हो जाते है: 'एकपदीभावः समासः'।

  समास में समस्त होनेवाले पदों का विभक्ति-प्रत्यय लुप्त हो जाता है।

  समस्त पदों के बीच सन्धि की स्थिति होने पर सन्धि अवश्य होती है। यह नियम संस्कृत तत्सम में अत्यावश्यक है।

  समास की प्रक्रिया से बनने वाले शब्द को समस्तपद कहते हैं; जैसे- देशभक्ति, मुरलीधर, राम-लक्ष्मण, चौराहा, महात्मा तथा रसोईघर आदि।

  समस्तपद का विग्रह करके उसे पुनः पहले वाली स्थिति में लाने की प्रक्रिया को समास-विग्रह कहते हैं; जैसे- देश के लिए भक्ति; मुरली को धारण किया है जिसने; राम और लक्ष्मण; चार राहों का समूह; महान है जो आत्मा; रसोई के लिए घर आदि।

  समस्तपद में मुख्यतः दो पद होते हैं- पूर्वपद तथा उत्तरपद। 
पहले वाले पद को पूर्वपद कहा जाता है तथा बाद वाले पद को उत्तरपद; जैसे-
पूजाघर(समस्तपद) - पूजा(पूर्वपद) + घर(उत्तरपद) - पूजा के लिए घर (समास-विग्रह)
राजपुत्र(समस्तपद) - राजा(पूर्वपद) + पुत्र(उत्तरपद) - राजा का पुत्र (समास-विग्रह)

समास के भेद

समास के मुख्य सात भेद है:-
(1)तत्पुरुष समास ( Determinative Compound)
(2)कर्मधारय समास (Appositional Compound)
(3)द्विगु समास (Numeral Compound)
(4)बहुव्रीहि समास (Attributive Compound)
(5)द्वन्द समास (Copulative Compound)
(6)अव्ययीभाव समास(Adverbial Compound)
(7)नञ समास

(1)तत्पुरुष समास :- 

जिस समास में बाद का अथवा उत्तरपद प्रधान होता है तथा दोनों पदों के बीच का कारक-चिह्न लुप्त हो जाता है, उसे तत्पुरुष समास कहते है।
जैसे-

तुलसीकृत= तुलसी से कृत 
शराहत= शर से आहत 
राहखर्च= राह के लिए खर्च
राजा का कुमार= राजकुमार

तत्पुरुष समास में अन्तिम पद प्रधान होता है। इस समास में साधारणतः प्रथम पद विशेषण और द्वितीय पद विशेष्य होता है। द्वितीय पद, अर्थात बादवाले पद के विशेष्य होने के कारण इस समास में उसकी प्रधानता रहती है।

तत्पुरुष समास के भेद

तत्पुरुष समास के छह भेद होते है-
(i)कर्म तत्पुरुष
(ii) करण तत्पुरुष
(iii)सम्प्रदान तत्पुरुष
(iv)अपादान तत्पुरुष
(v)सम्बन्ध तत्पुरुष
(vi)अधिकरण तत्पुरुष

(i)कर्म तत्पुरुष (द्वितीया तत्पुरुष)-

इसमें कर्म कारक की विभक्ति 'को' का लोप हो जाता है। जैसे-

समस्त-पद

विग्रह

स्वर्गप्राप्त

स्वर्ग (को) प्राप्त

कष्टापत्र

कष्ट (को) आपत्र (प्राप्त)

आशातीत

आशा (को) अतीत

गृहागत

गृह (को) आगत

सिरतोड़

सिर (को) तोड़नेवाला

चिड़ीमार

चिड़ियों (को) मारनेवाला

सिरतोड़

सिर (को) तोड़नेवाला

गगनचुंबी

गगन को चूमने वाला

यशप्राप्त

यश को प्राप्त

ग्रामगत

ग्राम को गया हुआ

रथचालक

रथ को चलाने वाला

जेबकतरा

जेब को कतरने वाला

(ii) करण तत्पुरुष (तृतीया तत्पुरुष)-

इसमें करण कारक की विभक्ति 'से', 'के द्वारा' का लोप हो जाता है। जैसे-

समस्त-पद

विग्रह

वाग्युद्ध

वाक् (से) युद्ध

आचारकुशल

आचार (से) कुशल

तुलसीकृत

तुलसी (से) कृत

कपड़छना

कपड़े (से) छना हुआ

मुँहमाँगा

मुँह (से) माँगा

रसभरा

रस (से) भरा

करुणागत

करुणा से पूर्ण

भयाकुल

भय से आकुल

रेखांकित

रेखा से अंकित

शोकग्रस्त

शोक से ग्रस्त

मदांध

मद से अंधा

मनचाहा

मन से चाहा

सूररचित

सूर द्वारा रचित

(iii)सम्प्रदान तत्पुरुष (चतुर्थी तत्पुरुष)-

इसमें संप्रदान कारक की विभक्ति 'के लिए' लुप्त हो जाती है। जैसे-

समस्त-पद

विग्रह

देशभक्ति

देश (के लिए) भक्ति

विद्यालय

विद्या (के लिए) आलय

रसोईघर

रसोई (के लिए) घर

हथकड़ी

हाथ (के लिए) कड़ी

राहखर्च

राह (के लिए) खर्च

पुत्रशोक

पुत्र (के लिए) शोक

स्नानघर

स्नान के लिए घर

यज्ञशाला

यज्ञ के लिए शाला

डाकगाड़ी

डाक के लिए गाड़ी

गौशाला

गौ के लिए शाला

सभाभवन

सभा के लिए भवन

लोकहितकारी

लोक के लिए हितकारी

देवालय

देव के लिए आलय

(iv)अपादान तत्पुरुष (पंचमी तत्पुरुष)-

इसमे अपादान कारक की विभक्ति 'से' (अलग होने का भाव) लुप्त हो जाती है। जैसे-

समस्त-पद

विग्रह

दूरागत

दूर से आगत

जन्मान्ध

जन्म से अन्ध

रणविमुख

रण से विमुख

देशनिकाला

देश से निकाला

कामचोर

काम से जी चुरानेवाला

नेत्रहीन

नेत्र (से) हीन

धनहीन

धन (से) हीन

पापमुक्त

पाप से मुक्त

जलहीन

जल से हीन

(v)सम्बन्ध तत्पुरुष (षष्ठी तत्पुरुष)-

इसमें संबंधकारक की विभक्ति 'का', 'के', 'की' लुप्त हो जाती है। जैसे-

समस्त-पद

विग्रह

विद्याभ्यास

विद्या का अभ्यास

सेनापति

सेना का पति

पराधीन

पर के अधीन

राजदरबार

राजा का दरबार

श्रमदान

श्रम (का) दान

राजभवन

राजा (का) भवन

राजपुत्र

राजा (का) पुत्र

देशरक्षा

देश की रक्षा

शिवालय

शिव का आलय

गृहस्वामी

गृह का स्वामी

(vi)अधिकरण तत्पुरुष (सप्तमी तत्पुरुष)-

इसमें अधिकरण कारक की विभक्ति 'में', 'पर' लुप्त जो जाती है। जैसे-

समस्त-पद

विग्रह

विद्याभ्यास

विद्या का अभ्यास

गृहप्रवेश

गृह में प्रवेश

नरोत्तम

नरों (में) उत्तम

पुरुषोत्तम

पुरुषों (में) उत्तम

दानवीर

दान (में) वीर

शोकमग्न

शोक में मग्न

लोकप्रिय

लोक में प्रिय

कलाश्रेष्ठ

कला में श्रेष्ठ

आनंदमग्न

आनंद में मग्न

(2)कर्मधारय समास:-

जिस समस्त-पद का उत्तरपद प्रधान हो तथा पूर्वपद व उत्तरपद में उपमान-उपमेय अथवा विशेषण-विशेष्य संबंध हो, कर्मधारय समास कहलाता है। 
दूसरे शब्दों में-कर्ता-तत्पुरुष को ही कर्मधारय कहते हैं।

पहचान: विग्रह करने पर दोनों पद के मध्य में 'है जो', 'के समान' आदि आते है।

जिस तत्पुरुष समास के समस्त होनेवाले पद समानाधिकरण हों, अर्थात विशेष्य-विशेषण-भाव को प्राप्त हों, कर्ताकारक के हों और लिंग-वचन में समान हों, वहाँ 'कर्मधारयतत्पुरुष समास होता है।

समस्त-पद

विग्रह

नवयुवक

नव है जो युवक

पीतांबर

पीत है जो अंबर

परमेश्र्वर

परम है जो ईश्र्वर

नीलकमल

नील है जो कमल

महात्मा

महान है जो आत्मा

कनकलता

कनक की-सी लता

प्राणप्रिय

प्राणों के समान प्रिय

देहलता

देह रूपी लता

लालमणि

लाल है जो मणि

नीलकंठ

नीला है जो कंठ

महादेव

महान है जो देव

अधमरा

आधा है जो मरा

परमानंद

परम है जो आनंद

कर्मधारय तत्पुरुष के भेद

कर्मधारय तत्पुरुष के चार भेद है-
(i)विशेषणपूर्वपद 
(ii) विशेष्यपूर्वपद 
(iii) विशेषणोभयपद
(iv)विशेष्योभयपद

(i) विशेषणपूर्वपद :-

इसमें पहला पद विशेषण होता है। 
जैसे- पीत अम्बर= पीताम्बर
परम ईश्वर= परमेश्वर
नीली गाय= नीलगाय
प्रिय सखा= प्रियसखा

(ii) विशेष्यपूर्वपद :-

इसमें पहला पद विशेष्य होता है और इस प्रकार के सामासिक पद अधिकतर संस्कृत में मिलते है।
जैसे- कुमारी (क्वाँरी लड़की)
श्रमणा (संन्यास ग्रहण की हुई )=कुमारश्रमणा।

(iii) विशेषणोभयपद :-

इसमें दोनों पद विशेषण होते है।
जैसे- नील-पीत (नीला-पी-ला ); शीतोष्ण (ठण्डा-गरम ); लालपिला; भलाबुरा; दोचार कृताकृत (किया-बेकिया, अर्थात अधूरा छोड़ दिया गया); सुनी-अनसुनी; कहनी-अनकहनी।

(iv) विशेष्योभयपद:-

इसमें दोनों पद विशेष्य होते है।
जैसे- आमगाछ या आम्रवृक्ष, वायस-दम्पति।

कर्मधारयतत्पुरुष समास के उपभेद

कर्मधारयतत्पुरुष समास के अन्य उपभेद हैं- 

(i) उपमानकर्मधारय

(ii) उपमितकर्मधारय

(iii) रूपककर्मधारय

जिससे किसी की उपमा दी जाये, उसे 'उपमान' और जिसकी उपमा दी जाये, उसे 'उपमेय' कहा जाता है। घन की तरह श्याम =घनश्याम- यहाँ 'घन' उपमान है और 'श्याम' उपमेय।

(i) उपमानकर्मधारय- 

इसमें उपमानवाचक पद का उपमेयवाचक पद के साथ समास होता हैं। इस समास में दोनों शब्दों के बीच से 'इव' या 'जैसा' अव्यय का लोप हो जाता है और दोनों ही पद, चूँकि एक ही कर्ताविभक्ति, वचन और लिंग के होते है, इसलिए समस्त पद कर्मधारय-लक्षण का होता है।
अन्य उदाहरण- विद्युत्-जैसी चंचला =विद्युच्चंचला।

(ii) उपमितकर्मधारय- 

यह उपमानकर्मधारय का उल्टा होता है, अर्थात इसमें उपमेय पहला पद होता है और उपमान दूसरा। जैसे- अधरपल्लव के समान = अधर-पल्लव; नर सिंह के समान =नरसिंह।

किन्तु, जहाँ उपमितकर्मधारय- जैसा 'नर सिंह के समान' या 'अधर पल्लव के समान' विग्रह न कर अगर 'नर ही सिंह या 'अधर ही पल्लव'- जैसा विग्रह किया जाये, अर्थात उपमान-उपमेय की तुलना न कर उपमेय को ही उपमान कर दिया जाय-
दूसरे शब्दों में, जहाँ एक का दूसरे पर आरोप कर दिया जाये, वहाँ रूपककर्मधारय होगा। उपमितकर्मधारय और रूपककर्मधारय में विग्रह का यही अन्तर है। रूपककर्मधारय के अन्य उदाहरण- मुख ही है चन्द्र = मुखचन्द्र; विद्या ही है रत्न = विद्यारत्न भाष्य (व्याख्या) ही है अब्धि (समुद्र)= भाष्याब्धि।

(3) द्विगु समास:-

जिस समस्त-पद का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो, वह द्विगु कर्मधारय समास कहलाता है।
जैसे-

समस्त-पद

विग्रह

सप्तसिंधु

सात सिंधुओं का समूह

दोपहर

दो पहरों का समूह

त्रिलोक

तीनों लोको का समाहार

तिरंगा

तीन रंगों का समूह

दुअत्री

दो आनों का समाहार

पंचतंत्र

पाँच तंत्रों का समूह

पंजाब

पाँच आबों (नदियों) का समूह

पंचरत्न

पाँच रत्नों का समूह

नवरात्रि

नौ रात्रियों का समूह

त्रिवेणी

तीन वेणियों (नदियों) का समूह

सतसई

सात सौ दोहों का समूह

द्विगु के भेद

इसके दो भेद होते है- 

(i)समाहारद्विगु

(ii)उत्तरपदप्रधानद्विगु।

(i) समाहारद्विगु :- 

समाहार का अर्थ है 'समुदाय' 'इकट्ठा होना' 'समेटना'।
जैसे- तीनों लोकों का समाहार= त्रिलोक
पाँचों वटों का समाहार= पंचवटी
पाँच सेरों का समाहार= पसेरी
तीनो भुवनों का समाहार= त्रिभुवन

(ii) उत्तरपदप्रधानद्विगु:-

उत्तरपदप्रधान द्विगु के दो प्रकार है-
(a) बेटा या उत्पत्र के अर्थ में; जैसे- दो माँ का- द्वैमातुर या दुमाता; दो सूतों के मेल का- दुसूती;
(b) जहाँ सचमुच ही उत्तरपद पर जोर हो; जैसे- पाँच प्रमाण (नाम) =पंचप्रमाण; पाँच हत्थड़ (हैण्डिल)= पँचहत्थड़।

द्रष्टव्य- अनेक बहुव्रीहि समासों में भी पूर्वपद संख्यावाचक होता है। ऐसी हालत में विग्रह से ही जाना जा सकता है कि समास बहुव्रीहि है या द्विगु। यदि 'पाँच हत्थड़ है जिसमें वह =पँचहत्थड़' विग्रह करें, तो यह बहुव्रीहि है और 'पाँच हत्थड़' विग्रह करें, तो द्विगु।

तत्पुरुष समास के इन सभी प्रकारों में ये विशेषताएँ पायी जाती हैं-
(i) यह समास दो पदों के बीच होता है। 
(ii) इसके समस्त पद का लिंग उत्तरपद के अनुसार हैं। 
(iii) इस समास में उत्तरपद का ही अर्थ प्रधान होता हैं।

 

(4)बहुव्रीहि समास:- 

समास में आये पदों को छोड़कर जब किसी अन्य पदार्थ की प्रधानता हो, तब उसे बहुव्रीहि समास कहते है।

दूसरे शब्दों में- जिस समास में पूर्वपद तथा उत्तरपद- दोनों में से कोई भी पद प्रधान न होकर कोई अन्य पद ही प्रधान हो, वह बहुव्रीहि समास कहलाता है।
जैसे- दशानन- दस मुहवाला- रावण।

जिस समस्त-पद में कोई पद प्रधान नहीं होता, दोनों पद मिल कर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते है, उसमें बहुव्रीहि समास होता है। 'नीलकंठ', नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव। यहाँ पर दोनों पदों ने मिल कर एक तीसरे पद 'शिव' का संकेत किया, इसलिए यह बहुव्रीहि समास है।

इस समास के समासगत पदों में कोई भी प्रधान नहीं होता, बल्कि पूरा समस्तपद ही किसी अन्य पद का विशेषण होता है।

समस्त-पद

विग्रह

प्रधानमंत्री

मंत्रियो में प्रधान है जो (प्रधानमंत्री)

पंकज

(पंक में पैदा हो जो (कमल)

अनहोनी

न होने वाली घटना (कोई विशेष घटना)

निशाचर

निशा में विचरण करने वाला (राक्षस)

चौलड़ी

चार है लड़ियाँ जिसमे (माला)

विषधर

(विष को धारण करने वाला (सर्प)

मृगनयनी

मृग के समान नयन हैं जिसके अर्थात सुंदर स्त्री

त्रिलोचन

तीन लोचन हैं जिसके अर्थात शिव

महावीर

महान वीर है जो अर्थात हनुमान

सत्यप्रिय

सत्य प्रिय है जिसे अर्थात विशेष व्यक्ति

तत्पुरुष और बहुव्रीहि में अन्तर- 

तत्पुरुष और बहुव्रीहि में यह भेद है कि तत्पुरुष में प्रथम पद द्वितीय पद का विशेषण होता है, जबकि बहुव्रीहि में प्रथम और द्वितीय दोनों पद मिलकर अपने से अलग किसी तीसरे के विशेषण होते है।
जैसे- 'पीत अम्बर =पीताम्बर (पीला कपड़ा )' कर्मधारय तत्पुरुष है तो 'पीत है अम्बर जिसका वह- पीताम्बर (विष्णु)' बहुव्रीहि। इस प्रकार, यह विग्रह के अन्तर से ही समझा जा सकता है कि कौन तत्पुरुष है और कौन बहुव्रीहि। विग्रह के अन्तर होने से समास का और उसके साथ ही अर्थ का भी अन्तर हो जाता है। 'पीताम्बर' का तत्पुरुष में विग्रह करने पर 'पीला कपड़ा' और बहुव्रीहि में विग्रह करने पर 'विष्णु' अर्थ होता है।

बहुव्रीहि समास के भेद

बहुव्रीहि समास के चार भेद है-
(i) समानाधिकरणबहुव्रीहि 
(ii) व्यधिकरणबहुव्रीहि 
(iii) तुल्ययोगबहुव्रीहि 
(iv)व्यतिहारबहुव्रीहि

(i) समानाधिकरणबहुव्रीहि :- 

इसमें सभी पद प्रथमा, अर्थात कर्ताकारक की विभक्ति के होते है; किन्तु समस्तपद द्वारा जो अन्य उक्त होता है, वह कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि विभक्ति-रूपों में भी उक्त हो सकता है।

जैसे- प्राप्त है उदक जिसको =प्राप्तोदक (कर्म में उक्त); 
जीती गयी इन्द्रियाँ है जिसके द्वारा =जितेन्द्रिय (करण में उक्त);
दत्त है भोजन जिसके लिए =दत्तभोजन (सम्प्रदान में उक्त);
निर्गत है धन जिससे =निर्धन (अपादान में उक्त);
पीत है अम्बर जिसका =पीताम्बर;
मीठी है बोली जिसकी =मिठबोला;
नेक है नाम जिसका =नेकनाम (सम्बन्ध में उक्त);
चार है लड़ियाँ जिसमें =चौलड़ी;
सात है खण्ड जिसमें =सतखण्डा (अधिकरण में उक्त)।

(ii) व्यधिकरणबहुव्रीहि :-

समानाधिकरण में जहाँ दोनों पद प्रथमा या कर्ताकारक की विभक्ति के होते है, वहाँ पहला पद तो प्रथमा विभक्ति या कर्ताकारक की विभक्ति के रूप का ही होता है, जबकि बादवाला पद सम्बन्ध या अधिकरण कारक का हुआ करता है। जैसे- शूल है पाणि (हाथ) में जिसके =शूलपाणि; 
वीणा है पाणि में जिसके =वीणापाणि।

(iii) तुल्ययोगबहुव्रीहिु:-

जिसमें पहला पद 'सह' हो, वह तुल्ययोगबहुव्रीहि या सहबहुव्रीहि कहलाता है। 
'सह' का अर्थ है 'साथ' और समास होने पर 'सह' की जगह केवल 'स' रह जाता है। इस समास में यह ध्यान देने की बात है कि विग्रह करते समय जो 'सह' (साथ) बादवाला या दूसरा शब्द प्रतीत होता है, वह समास में पहला हो जाता है। 
जैसे- जो बल के साथ है, वह=सबल; जो देह के साथ है, वह सदेह; जो परिवार के साथ है, वह सपरिवार; जो चेत (होश) के साथ है, वह =सचेत।

(iv)व्यतिहारबहुव्रीहि:-

जिससे घात-प्रतिघात सूचित हो, उसे व्यतिहारबहुव्रीहि कहा जाता है।
इ समास के विग्रह से यह प्रतीत होता है कि 'इस चीज से और इस या उस चीज से जो लड़ाई हुई'।
जैसे- मुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुई =मुक्का-मुक्की; घूँसे-घूँसे से जो लड़ाई हुई =घूँसाघूँसी; बातों-बातों से जो लड़ाई हुई =बाताबाती। इसी प्रकार, खींचातानी, कहासुनी, मारामारी, डण्डाडण्डी, लाठालाठी आदि।

इन चार प्रमुख जातियों के बहुव्रीहि समास के अतिरिक्त इस समास का एक प्रकार और है। जैसे-

प्रादिबहुव्रीहि- 

जिस बहुव्रीहि का पूर्वपद उपसर्ग हो, वह प्रादिबहुव्रीहि कहलाता है।

जैसे- कुत्सित है रूप जिसका = कुरूप; नहीं है रहम जिसमें = बेरहम; नहीं है जन जहाँ = निर्जन।

तत्पुरुष के भेदों में भी 'प्रादि' एक भेद है, किन्तु उसके दोनों पदों का विग्रह विशेषण-विशेष्य-पदों की तरह होगा, न कि बहुव्रीहि के ढंग पर, अन्य पद की प्रधानता की तरह। जैसे- अति वृष्टि= अतिवृष्टि (प्रादितत्पुरुष) ।

द्रष्टव्य- 

(i) बहुव्रीहि के समस्त पद में दूसरा पद 'धर्म' या 'धनु' हो, तो वह आकारान्त हो जाता है;

जैसे- प्रिय है धर्म जिसका = प्रियधर्मा; सुन्दर है धर्म जिसका = सुधर्मा; आलोक ही है धनु जिसका = आलोकधन्वा।

(ii) सकारान्त में विकल्प से 'आ' और 'क' किन्तु ईकारान्त, उकारान्त और ऋकारान्त समासान्त पदों के अन्त में निश्र्चितरूप से 'क' लग जाता है।

जैसे- उदार है मन जिसका = उदारमनस, उदारमना या उदारमनस्क; अन्य में है मन जिसका = अन्यमना या अन्यमनस्क; ईश्र्वर है कर्ता जिसका = ईश्र्वरकर्तृक; साथ है पति जिसके; सप्तीक; बिना है पति के जो = विप्तीक।

बहुव्रीहि समास की विशेषताएँ

बहुव्रीहि समास की निम्नलिखित विशेषताएँ है-

(i) यह दो या दो से अधिक पदों का समास होता है। 
(ii)इसका विग्रह शब्दात्मक या पदात्मक न होकर वाक्यात्मक होता है। 
(iii)इसमें अधिकतर पूर्वपद कर्ता कारक का होता है या विशेषण। 
(iv)इस समास से बने पद विशेषण होते है। अतः उनका लिंग विशेष्य के अनुसार होता है।
(v) इसमें अन्य पदार्थ प्रधान होता है।

(5)द्वन्द्व समास :- 

जिस समस्त-पद के दोनों पद प्रधान हो तथा विग्रह करने पर 'और', 'अथवा', 'या', 'एवं' लगता हो वह द्वन्द्व समास कहलाता है।

समस्त-पद

विग्रह

रात-दिन

रात और दिन

सुख-दुख

सुख और दुख

दाल-चावल

दाल और चावल

भाई-बहन

भाई और बहन

माता-पिता

माता और पिता

ऊपर-नीचे

ऊपर और नीचे

गंगा-यमुना

गंगा और यमुना

दूध-दही

दूध और दही

आयात-निर्यात

आयात और निर्यात

देश-विदेश

देश और विदेश

आना-जाना

आना और जाना

राजा-रंक

राजा और रंक

पहचान : दोनों पदों के बीच प्रायः योजक चिह्न (Hyphen (-) का प्रयोग होता है।

द्वन्द्व समास में सभी पद प्रधान होते है। द्वन्द्व और तत्पुरुष से बने पदों का लिंग अन्तिम शब्द के अनुसार होता है।

द्वन्द्व समास के भेद

द्वन्द्व समास के तीन भेद है-
(i) इतरेतर द्वन्द्व
(ii) समाहार द्वन्द्व 
(iii) वैकल्पिक द्वन्द्व

(i) इतरेतर द्वन्द्व-: 

वह द्वन्द्व, जिसमें 'और' से सभी पद जुड़े हुए हो और पृथक् अस्तित्व रखते हों, 'इतरेतर द्वन्द्व' कहलता है।

इस समास से बने पद हमेशा बहुवचन में प्रयुक्त होते है; क्योंकि वे दो या दो से अधिक पदों के मेल से बने होते है।
जैसे- राम और कृष्ण =राम-कृष्ण
ऋषि और मुनि =ऋषि-मुनि
गाय और बैल =गाय-बैल
भाई और बहन =भाई-बहन
माँ और बाप =माँ-बाप
बेटा और बेटी =बेटा-बेटी इत्यादि।

यहाँ ध्यान रखना चाहिए कि इतरेतर द्वन्द्व में दोनों पद न केवल प्रधान होते है, बल्कि अपना अलग-अलग अस्तित्व भी रखते है।

(ii) समाहार द्वन्द्व-

समाहार का अर्थ है समष्टि या समूह। जब द्वन्द्व समास के दोनों पद और समुच्चयबोधक से जुड़े होने पर भी पृथक-पृथक अस्तित्व न रखें, बल्कि समूह का बोध करायें, तब वह समाहार द्वन्द्व कहलाता है।

समाहार द्वन्द्व में दोनों पदों के अतिरिक्त अन्य पद भी छिपे रहते है और अपने अर्थ का बोध अप्रत्यक्ष रूप से कराते है। 
जैसे- आहारनिद्रा =आहार और निद्रा (केवल आहार और निद्रा ही नहीं, बल्कि इसी तरह की और बातें भी);
दालरोटी=दाल और रोटी (अर्थात भोजन के सभी मुख्य पदार्थ); 
हाथपाँव =हाथ और पाँव (अर्थात हाथ और पाँव तथा शरीर के दूसरे अंग भी ) 
इसी तरह नोन-तेल, कुरता-टोपी, साँप-बिच्छू, खाना-पीना इत्यादि।

कभी-कभी विपरीत अर्थवाले या सदा विरोध रखनेवाले पदों का भी योग हो जाता है। जैसे- चढ़ा-ऊपरी, लेन-देन, आगा-पीछा, चूहा-बिल्ली इत्यादि।

जब दो विशेषण-पदों का संज्ञा के अर्थ में समास हो, तो समाहार द्वन्द्व होता है।
जैसे- लंगड़ा-लूला, भूखा-प्यास, अन्धा-बहरा इत्यादि।
उदाहरण- लँगड़े-लूले यह काम नहीं क्र सकते; भूखे-प्यासे को निराश नहीं करना चाहिए; इस गाँव में बहुत-से अन्धे-बहरे है।

द्रष्टव्य- यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि जब दोनों पद विशेषण हों और विशेषण के ही अर्थ में आयें तब वहाँ द्वन्द्व समास नहीं होता, वहाँ कर्मधारय समास हो जाता है। जैसे- लँगड़ा-लूला आदमी यह काम नहीं कर सकता; भूखा-प्यासा लड़का सो गया; इस गाँव में बहुत-से लोग अन्धे-बहरे हैं- इन प्रयोगों में 'लँगड़ा-लूला', 'भूखा-प्यासा' और 'अन्धा-बहरा' द्वन्द्व समास नहीं हैं।

(iii) वैकल्पिक द्वन्द्व:-

जिस द्वन्द्व समास में दो पदों के बीच 'या', 'अथवा' आदि विकल्पसूचक अव्यय छिपे हों, उसे वैकल्पिक द्वन्द्व कहते है।

इस समास में बहुधा दो विपरीतार्थक शब्दों का योग रहता है। जैसे- पाप-पुण्य, धर्माधर्म, भला-बुरा, थोड़ा-बहुत इत्यादि। यहाँ 'पाप-पुण्य' का अर्थ 'पाप' और 'पुण्य' भी प्रसंगानुसार हो सकता है।

(6) अव्ययीभाव समास:- 

अव्ययीभाव का लक्षण है- जिसमे पूर्वपद की प्रधानता हो और सामासिक या समास पद अव्यय हो जाय, उसे अव्ययीभाव समास कहते है।
सरल शब्दो में- जिस समास का पहला पद (पूर्वपद) अव्यय तथा प्रधान हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते है।

इस समास में समूचा पद क्रियाविशेषण अव्यय हो जाता है। इसमें पहला पद उपसर्ग आदि जाति का अव्यय होता है और वही प्रधान होता है। जैसे- प्रतिदिन, यथासम्भव, यथाशक्ति, बेकाम, भरसक इत्यादि।

पहचान : पहला पद अनु, आ, प्रति, भर, यथा, यावत, हर आदि होता है।

अव्ययीभाववाले पदों का विग्रह- 

ऐसे समस्तपदों को तोड़ने में, अर्थात उनका विग्रह करने में हिन्दी में बड़ी कठिनाई होती है, विशेषतः संस्कृत के समस्त पदों का विग्रह करने में हिन्दी में जिन समस्त पदों में द्विरुक्तिमात्र होती है, वहाँ विग्रह करने में केवल दोनों पदों को अलग कर दिया जाता है।

जैसे- प्रतिदिन- दिन-दिन
यथाविधि- विधि के अनुसार
यथाक्रम- क्रम के अनुसार
यथाशक्ति- शक्ति के अनुसार
बेखटके- बिना खटके के 
बेखबर- बिना खबर के
रातोंरात- रात ही रात में
कानोंकान- कान ही कान में
भुखमरा- भूख से मरा हुआ 
आजन्म- जन्म से लेकर

पूर्वपद-अव्यय

+

उत्तरपद

=

समस्त-पद

विग्रह

प्रति

+

दिन

=

प्रतिदिन

प्रत्येक दिन

+

जन्म

=

आजन्म

जन्म से लेकर

यथा

+

संभव

=

यथासंभव

जैसा संभव हो

अनु

+

रूप

=

अनुरूप

रूप के योग्य

भर

+

पेट

=

भरपेट

पेट भर के

हाथ

+

हाथ

=

हाथों-हाथ

हाथ ही हाथ में

(7)नत्र समास:- 

इसमे नहीं का बोध होता है। जैसे - अनपढ़, अनजान , अज्ञान ।

समस्त-पद

विग्रह

अनाचार

न आचार

अनदेखा

न देखा हुआ

अन्याय

न न्याय

अनभिज्ञ

न अभिज्ञ

नालायक

नहीं लायक

अचल

न चल

नास्तिक

न आस्तिक

अनुचित

न उचित

समास-सम्बन्धी कुछ विशेष बातें-

(1)एक समस्त पद में एक से अधिक प्रकार के समास हो सकते है। यह विग्रह करने पर स्पष्ट होता है। जिस समास के अनुसार विग्रह होगा, वही समास उस पद में माना जायेगा।

जैसे-
(i)पीताम्बर- पीत है जो अम्बर (कर्मधारय), 
पीत है अम्बर जिसका (बहुव्रीहि);
(ii)निडर- बिना डर का (अव्ययीभाव ); 
नहीं है डर जिसे (प्रादि का नञ बहुव्रीहि);
(iii) सुरूप - सुन्दर है जो रूप (कर्मधारय),
सुन्दर है रूप जिसका (बहुव्रीहि);
(iv) चन्द्रमुख- चन्द्र के समान मुख (कर्मधारय);
(v)बुद्धिबल- बुद्धि ही है बल (कर्मधारय);

(2) समासों का विग्रह करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि यथासम्भव समास में आये पदों के अनुसार ही विग्रह हो।
जैसे- पीताम्बर का विग्रह- 'पीत है जो अम्बर' अथवा 'पीत है अम्बर जिसका' ऐसा होना चाहिए। बहुधा संस्कृत के समासों, विशेषकर अव्ययीभाव, बहुव्रीहि और उपपद समासों का विग्रह हिन्दी के अनुसार करने में कठिनाई होती है। ऐसे स्थानों पर हिन्दी के शब्दों से सहायता ली जा सकती है।

जैसे- कुम्भकार =कुम्भ को बनानेवाला;
खग=आकाश में जानेवाला;
आमरण =मरण तक;
व्यर्थ =बिना अर्थ का;
विमल=मल से रहित; इत्यादि।

(3)अव्ययीभाव समास में दो ही पद होते है। बहुव्रीहि में भी साधारणतः दो ही पद रहते है। तत्पुरुष में दो से अधिक पद हो सकते है और द्वन्द्व में तो सभी समासों से अधिक पद रह सकते है। 
जैसे- नोन-तेल-लकड़ी, आम-जामुन-कटहल-कचनार इत्यादि (द्वन्द्व)।

(4)यदि एक समस्त पद में अनेक समासवाले पदों का मेल हो तो अलग-अलग या एक साथ भी विग्रह किया जा सकता है।

जैसे- चक्रपाणिदर्शनार्थ-चक्र है पाणि में जिसके= चक्रपाणि (बहुव्रीहि);
दर्शन के अर्थ =दर्शनार्थ (अव्ययीभाव );
चक्रपाणि के दर्शनार्थ =चक्रपाणिदर्शनार्थ (अव्ययीभाव )। समूचा पद क्रियाविशेषण अव्यय है, इसलिए अव्ययीभाव है।

प्रयोग की दृष्टि से समास के भेद-

प्रयोग की दृष्टि से समास के तीन भेद किये जा सकते है-
(1)संयोगमूलक समास
(2)आश्रयमूलक समास 
(3)वर्णनमूलक समास

(1)संज्ञा-समास :- 

संयोगमूलक समास को संज्ञा-समास कहते है। इस प्रकार के समास में दोनों पद संज्ञा होते है। 
दूसरे शब्दों में, इसमें दो संज्ञाओं का संयोग होता है।
जैसे- माँ-बाप, भाई-बहन, माँ-बेटी, सास-पतोहू, दिन-रात, रोटी-बेटी, माता-पिता, दही-बड़ा, दूध-दही, थाना-पुलिस, सूर्य-चन्द्र इत्यादि।

(2)विशेषण-समास:- 

यह आश्रयमूलक समास है। यह प्रायः कर्मधारय समास होता है। इस समास में प्रथम पद विशेषण होता है, किन्तु द्वितीय पद का अर्थ बलवान होता है। कर्मधारय का अर्थ है कर्म अथवा वृत्ति धारण करनेवाला। यह विशेषण-विशेष्य, विशेष्य-विशेषण, विशेषण तथा विशेष्य पदों द्वारा सम्पत्र होता है। जैसे-

(क) जहाँ पूर्वपद विशेषण हो; यथा- कच्चाकेला, शीशमहल, महरानी। 
(ख)जहाँ उत्तरपद विशेषण हो; यथा- घनश्याम। 
(ग़)जहाँ दोनों पद विशेषण हों; यथा- लाल-पीला, खट्टा-मीठा। 
(घ) जहाँ दोनों पद विशेष्य हों; यथा- मौलवीसाहब, राजाबहादुर।

(3)अव्यय समास :- 

वर्णमूलक समास के अन्तर्गत बहुव्रीहि और अव्ययीभाव समास का निर्माण होता है। इस समास (अव्ययीभाव) में प्रथम पद साधारणतः अव्यय होता है और दूसरा पद संज्ञा। जैसे- यथाशक्ति, यथासाध्य, प्रतिमास, यथासम्भव, घड़ी-घड़ी, प्रत्येक, भरपेट, यथाशीघ्र इत्यादि।

सन्धि और समास में अन्तर

सन्धि और समास का अन्तर इस प्रकार है- 
(i) समास में दो पदों का योग होता है; किन्तु सन्धि में दो वर्णो का। 
(ii) समास में पदों के प्रत्यय समाप्त कर दिये जाते है। सन्धि के लिए दो वर्णों के मेल और विकार की गुंजाइश रहती है, जबकि समास को इस मेल या विकार से कोई मतलब नहीं। 
(iii) सन्धि के तोड़ने को 'विच्छेद' कहते है, जबकि समास का 'विग्रह' होता है। जैसे- 'पीताम्बर' में दो पद है- 'पीत' और 'अम्बर' । सन्धिविच्छेद होगा- पीत+अम्बर;
जबकि समासविग्रह होगा- पीत है जो अम्बर या पीत है जिसका अम्बर = पीताम्बर। यहाँ ध्यान देने की बात है कि हिंदी में सन्धि केवल तत्सम पदों में होती है, जबकि समास संस्कृत तत्सम, हिन्दी, उर्दू हर प्रकार के पदों में। यही कारण है कि हिंदी पदों के समास में सन्धि आवश्यक नहीं है। 
संधि में वर्णो के योग से वर्ण परिवर्तन भी होता है जबकि समास में ऐसा नहीं होता।

कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर

इन दोनों समासों में अंतर समझने के लिए इनके विग्रह पर ध्यान देना चाहिए। कर्मधारय समास में एक पद विशेषण या उपमान होता है और दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है। जैसे-'नीलगगन' में 'नील' विशेषण है तथा 'गगन' विशेष्य है। इसी तरह 'चरणकमल' में 'चरण' उपमेय है और 'कमल' उपमान है। अतः ये दोनों उदाहरण कर्मधारय समास के है।

बहुव्रीहि समास में समस्त पद ही किसी संज्ञा के विशेषण का कार्य करता है। जैसे- 'चक्रधर' चक्र को धारण करता है जो अर्थात 'श्रीकृष्ण'।

नीलकंठ- नीला है जो कंठ- (कर्मधारय) 
नीलकंठ- नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव- (बहुव्रीहि)

लंबोदर- मोटे पेट वाला- (कर्मधारय) 
लंबोदर- लंबा है उदर जिसका अर्थात गणेश- (बहुव्रीहि)

महात्मा- महान है जो आत्मा- (कर्मधारय)
महात्मा- महान आत्मा है जिसकी अर्थात विशेष व्यक्ति- (बहुव्रीहि)

कमलनयन- कमल के समान नयन- (कर्मधारय)
कमलनयन- कमल के समान नयन हैं जिसके अर्थात विष्णु- (बहुव्रीहि)

पीतांबर- पीले हैं जो अंबर (वस्त्र)- (कर्मधारय)
पीतांबर- पीले अंबर हैं जिसके अर्थात कृष्ण- (बहुव्रीहि)

द्विगु और बहुव्रीहि समास में अंतर

द्विगु समास का पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है और दूसरा पद विशेष्य होता है जबकि बहुव्रीहि समास में समस्त पद ही विशेषण का कार्य करता है। जैसे-

चतुर्भुज- चार भुजाओं का समूह- द्विगु समास। 
चतुर्भुज- चार है भुजाएँ जिसकी अर्थात विष्णु- बहुव्रीहि समास।

पंचवटी- पाँच वटों का समाहार- द्विगु समास। 
पंचवटी- पाँच वटों से घिरा एक निश्चित स्थल अर्थात दंडकारण्य में स्थित वह स्थान जहाँ वनवासी राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ निवास किया- बहुव्रीहि समास।

त्रिलोचन- तीन लोचनों का समूह- द्विगु समास। 
त्रिलोचन- तीन लोचन हैं जिसके अर्थात शिव- बहुव्रीहि समास।

दशानन- दस आननों का समूह- द्विगु समास। 
दशानन- दस आनन हैं जिसके अर्थात रावण- बहुव्रीहि समास।

द्विगु और कर्मधारय में अंतर

(i) द्विगु का पहला पद हमेशा संख्यावाचक विशेषण होता है जो दूसरे पद की गिनती बताता है जबकि कर्मधारय का एक पद विशेषण होने पर भी संख्यावाचक कभी नहीं होता है।

(ii) द्विगु का पहला पद ही विशेषण बन कर प्रयोग में आता है जबकि कर्मधारय में कोई भी पद दूसरे पद का विशेषण हो सकता है। जैसे-

नवरत्न- नौ रत्नों का समूह- द्विगु समास 
चतुर्वर्ण- चार वर्णो का समूह- द्विगु समास 
पुरुषोत्तम- पुरुषों में जो है उत्तम- कर्मधारय समास 
रक्तोत्पल- रक्त है जो उत्पल- कर्मधारय समास

 

सामासिक पदों की सूची

तत्पुरुष समास (कर्मतत्पुरुष)

पद

विग्रह

गगनचुम्बी

गगन (को) चूमनेवाला

चिड़ीमार

चिड़ियों (को) मारनेवाला

कठखोदवा

काठ (को) खोदनेवाला

मुँहतोड़

मुँह (को) तोड़नेवाला

अनुभव जन्य

अनुभव से जन्य

उद्योगपति

उद्योग का पति (मालिक)

घुड़दौड़

घोड़ों की दौड़

देशाटन

देश में अटन (भ्रमण)

देशवासी

देश का वासी

अछूतोद्धार

अछूतों का उद्धार

ऋषिकन्या

ऋषि की कन्या

हरघड़ी

घड़ी-घड़ी या प्रत्येक घड़ी

गृहप्रवेश

गृह में प्रवेश

दहीबड़ा

दही में डूबा हुआ बड़ा

गोशाला

गौओं के लिए शाला

घुड़सवार

घोड़े पर सवार

जलधारा

जल की धारा

पूँजीपति

पूँजी का पति

हस्तलिखित

हाथ से लिखित

देशभक्त

देश का भक्त

दानवीर

दान देने में वीर (सप्तमी तत्पुरुष)

पर्णशाला

पर्णनिर्मित शाला

नराधम

नरों में अधम

राहखर्च

राह के लिए खर्च

विद्यासागर

विद्या का सागर

आनन्दाश्रम

आनन्द का आश्रम

कर्महीन

कर्म से हीन (पंचमी तत्पुरुष)

कविश्रेष्ठ

कवियों से श्रेष्ठ

काव्यकार

काव्य की रचना करनेवाला (उपपद तत्पुरुष)

क्षत्रियाधम

क्षत्रियों में अधम(सप्तमी तत्पुरुष)

ग्रामोद्धार

ग्राम का उद्धार (ष० तत्पुरुष)

गृहस्थ

गृह में स्थित (उपपद तत्पुरुष)

जीवनमुक्त

जीवन से मुक्त (ष० तत्पुरुष)

तिलचट्टा

तिल को चाटनेवाला

दुखसंतप्त

दुःख से संतप्त

धनहीन

धन से हीन

नरोत्तम

नरों में उत्तम

पदच्युत

पद से च्युत

पादप

पैर से पीनेवाला (उपपद तत्पुरुष)

पुस्तकालय

पुस्तक के लिए आलय

मनगढ़न्त

मन से गढ़ा हुआ (तृ० तत्पुरुष)

मालगोदाम

माल के लिए गोदाम

रामायण

राम का अयन (ष० तत्पुरुष)

विद्यार्थी

विद्या का अर्थी (ष० तत्पुरुष)

पाकिटमार

पाकिट (को) मारनेवाला

गृहागत

गृह को आगत

गिरहकट

गिरह (को) काटनेवाला

स्वर्गप्राप्त

स्वर्ग को प्राप्त

आपबीती

आप पर बीती (सप्तमी तत्पुरुष)

गुणहीन

गुणों से हीन

जन्मांध

जन्म से अंधा

दानवीर

दान में वीर

अमृतधारा

अमृत की धारा

आत्मविश्वास

आत्मा पर विश्वास

कष्टसाध्य

कष्ट से होने वाला

गुरुदक्षिणा

गुरु के लिए दक्षिणा

गोबर गणेश

गोबर से बना गणेश

अकाल पीड़ित

अकाल से पीड़ित

गंगाजल

गंगा का जल

जीवनसाथी

जीवन का साथी

देशभक्ति

देश की भक्ति

भयभीत

भय से भीत (डरा)

पथभ्रष्ट

पथ से भ्रष्ट

चरित्रचित्रण

चरित्र का चित्रण

युधिष्ठिर

युद्ध में स्थिर

पुरुषोत्तम

पुरुषों में उत्तम

नेत्रहीन

नेत्र से हीन

शरणागत

शरण में आगत

आकशवाणी

आकाश से वाणी

आकशवाणी

आकाश से वाणी

कर्मनिरत

कर्म से निरत (सप्तमी तत्पुरुष)

कुम्भकार

कुम्भ को करने (बनाने)वाला (उपपद तत्पुरुष)

कृषिप्रधान

कृषि में प्रधान(सप्तमी तत्पुरुष)

कृष्णार्पण

कृष्ण के लिए अर्पण (चतुर्थी तत्पुरुष)

गिरहकट

गिरह को काटनेवाला (द्वि तत्पुरुष)

चन्द्रोदय

चन्द्र का उदय (ष० तत्पुरुष)

ठाकुरसुहाती

ठाकुर (मालिक) के लिए रुचिकर बातें

दयासागर

दया का सागर

देशगत

देश को गया हुआ

धर्मविमुख

धर्म से विमुख

पददलित

पद से दलित

परीक्षोपयोगी

परीक्षा के लिए उपयोगी

पुत्रशोक

पुत्र के लिए शोक

मनमौजी

मन से मौजी

मदमाता

मद से माता (तृ० तत्पुरुष)

रसोईघर

रसोई के लिए घर

राजकन्या

राजा की कन्या (ष० तत्पुरुष)

करणतत्पुरुष

पद

विग्रह

प्रेमासिक्त

प्रेम से सिक्त

रसभरा

रस से भरा

मेघाच्छत्र

मेघ से आच्छत्र

रोगग्रस्त

रोग से ग्रस्त

दुःखार्त

दुःख से आर्त

देहचोर

देह से चोर

तुलसीकृत

तुलसी द्वारा कृत

शोकाकुल

शोक से आकुल

अकालपीड़ित

अकाल से पीड़ित

शोकार्त

शोक से आर्त

कामचोर

काम से चोर

जलसिक्त

जल से सिक्त

मदमाता

मद से माता

रोगपीड़ित

रोग से पीड़ित

मुँहमाँगा

मुँह से माँगा

मदान्ध

मद से अन्ध

पददलित

पद से दलित

दुःखसन्तप्त

दुःख से सन्तप्त

करुणापूर्ण

करुणा से पूर्ण

शोकग्रस्त

शोक से ग्रस्त

श्रमजीवी

श्रम से जीनेवाला

मुँहचोर

मुँह से चोर

 सम्प्रदान तत्पुरुष

पद

विग्रह

शिवार्पण

शिव के लिए अर्पण

सभाभवन

सभा के लिए भवन

मार्गव्यय

मार्ग के लिए व्यय

मालगोदाम

माल के लिए गोदाम

साधुदक्षिणा

साधु के लिए दक्षिणा

पुत्रशोक

पुत्र के लिए शोक

राहखर्च

राह के लिए खर्च

देवालय

देव के लिए आलय

परीक्षा भवन

परीक्षा के लिए भवन

रसोईघर

रसोई के लिए घर

लोकहितकारी

लोक के लिए हितकारी

स्नानघर

स्नान के लिए घर

डाकमहसूल

डाक के लिए महसूल

देशभक्ति

देश के लिए भक्ति

ब्राह्मणदेय

ब्राह्मण के लिए देय

गोशाला

गो के लिए शाला

विधानसभा

विधान के लिए सभा

रसोईघर

रसोई के लिए घर

 अपादान तत्पुरुष

पद

विग्रह

बलहीन

बल से हीन

पदभ्रष्ट

पद से भ्रष्ट

मायारिक्त

माया से रिक्त

ऋणमुक्त

ऋण से मुक्त

स्थानच्युत

स्थान से च्युत

नेत्रहीन

नेत्र से हीन

पथभ्रष्ट

पथ से भ्रष्ट

प्रेमरिक्त

प्रेम से रिक्त

धर्मविमुख

धर्म से विमुख

धर्मच्युत

धर्म से च्युत

देश निकाला

देश से निकाला

धनहीन

धन से हीन

स्थानभ्रष्ट

स्थान से भ्रष्ट

पापमुक्त

पाप से मुक्त

ईश्र्वरविमुख

ईश्र्वर से विमुख

लोकोत्तर

लोक से उत्तर (परे)

शक्तिहीन

शक्ति से हीन

जलरिक्त

जल से रिक्त

व्ययमुक्त

व्यय से मुक्त

पदच्युत

पद से च्युत

मरणोत्तर

मरण से उत्तर

जन्मांध

जन्म से अंधा

सम्बन्ध तत्पुरुष

पद

विग्रह

अत्रदान

अत्र का दान

वीरकन्या

वीर की कन्या

राजभवन

राजा का भवन

आनन्दाश्रम

आनन्द का आश्रम

रामायण

राम का अयन

गंगाजल

गंगा का जल

चन्द्रोदय

चन्द्र का उदय

चरित्रचित्रण

चरित्र का चित्रण

अमरस

आम का रस

सभापति

सभा का पति

गुरुसेवा

गुरु की सेवा

ग्रामोद्धार

ग्राम का उद्धार

राजपुत्र

राजा का पुत्र

राष्ट्रपति

राष्ट्र का पति

घुड़दौड़

घोड़ों की दौड़

यथाशक्ति

शक्ति के अनुसार

राजमंत्री

राजा का मंत्री

श्रमदान

श्रम का दान

त्रिपुरारि

त्रिपुर का अरि

प्रेमोपासक

प्रेम का उपासक

देवालय

देव का आलय

खरारि

खर का अरि

रामोपासक

राम का उपासक

देशसेवा

देश की सेवा

राजगृह

राजा का गृह

राजदरबार

राजा का दरबार

विद्यासागर

विद्या का सागर

सेनानायक

सेना का नायक

मृगछौना

मृग का छौना

पुस्तकालय

पुस्तक का आलय

हिमालय

हिम का आलय

सेनानायक

सेना के नायक

राजपुरुष

राजा का पुरुष

अधिकरण तत्पुरुष

पद

विग्रह

पुरुषोत्तम

पुरुषों में उत्तम

ग्रामवास

ग्राम में वास

आत्मनिर्भर

आत्म पर निर्भर

शरणागत

शरण में आगत

मुनिश्रेष्ठ

मुनियों में श्रेष्ठ

ध्यानमग्न

ध्यान में मग्न

दानवीर

दान में वीर

नराधम

नरों में अधम

रणशूर

रण में शूर

आपबीती

आप पर बीती

पुरुषसिंह

पुरुषों में सिंह

शास्त्रप्रवीण

शास्त्रों में प्रवीण

क्षत्रियाधम

क्षत्रियों में अधम

हरफनमौला

हर फन में मौला

नरोत्तम

नरों में उत्तम

कविश्रेष्ठ

कवियों में श्रेष्ठ

गृहप्रवेश

गृह में प्रवेश

सर्वोत्तम

सर्व में उत्तम

आनन्दमग्न

आनन्द में मग्न

कर्मधारय समास

पद

विग्रह

नवयुवक

नव युवक

कापुरुष

कुत्सित पुरुष

निलोत्पल

नील उत्पल

सन्मार्ग

सत् मार्ग

परमेश्र्वर

परम् ईश्र्वर

महाकाव्य

महान् काव्य

महात्मा

महान् है जो आत्मा

अंधविश्वास

अंधा है जो विश्वास

घनश्याम

घन के समान श्याम

अधपका

आधा है जो पका

दुरात्मा

दुर (बुरी) है जो आत्मा

अकाल मृत्यु

अकाल (असमय) है जो मृत्यु

नील गगन

नीला है जो गगन

महाराजा

महान है जो राजा

शुभागमन

शुभ है जो आगमन

नरसिंह

नर रूपी सिंह

क्रोधाग्नि

क्रोध रूपी अग्नि

लाल टोपी

लाल है जो टोपी

महाविद्यालय

महान है जो विद्यालय

करकमल

कमल के समान कर

खटमिट्ठा

खट्टा और मीठा है

प्राणप्रिय

प्राण के समान प्रिय

कमलनयन

कमल सरीखा नयन

चन्द्रमुख

चाँद-सा सुन्दर मुख

घृतात्र

घृत मिश्रित अत्र

धर्मशाला

धर्मार्थ के लिए शाला

कपोताग्रीवा

कपोत के समान ग्रीवा

चरणकमल

कमल के समान चरण

दहीबड़ा

दही में भिंगोया बड़ा

परमेश्वर

परम ईश्वर

महारानी

महती रानी

लौहपुरुष

लौह सदृश पुरुष

छुटभैये

छोटे भैये

कदत्र

कुत्सित अत्र

महापुरुष

महान पुरुष

पीताम्बर

पीत अम्बर

सज्जन

सत् जन

वीरबाला

वीर बाला

महावीर

महान् वीर

अंधकूप

अंधा है जो कूप (कुआँ)

नीलकंठ

नीला है जो कंठ

काली मिर्च

काली है जो मिर्च

नीलाम्बर

नीला है जो अंबर

नीलगाय

नीली है जो गाय

परमांनद

परम् है जो आनंद

महादेव

महान है जो देव

महाजन

महान है जो जन

चंद्रमुख

चंद्र के समान मुख

श्वेताम्बर

श्वेत है जो अम्बर

सदधर्म

सत है जो धर्म

विद्याधन

विद्या रूपी धन

मृगनयन

मृग जैसे नयन

नरोत्तम

नरों में उत्तम हैं जो

घनश्याम

घन के समान श्याम

परमांनद

परम आनंद

चन्द्रवदन

चन्द्र के समान वदन (मुखड़ा)

महाकाव्य

महान है काव्य जो

कुसुमकोमल

कुसुम के समान कोमल

गगनांगन

गगन रूपी आंगन

तिलपापड़ी

तिल से बनी पापड़ी

पकौड़ी

पकी हुई बड़ी

महाशय

महान आशय

मृगनयन

मृग के समान नयन

विशेष्यपूर्वपदकर्मधारय

पद

विग्रह

कुमारश्रवणा

कुमारी (क्वांरी)

श्यामसुन्दर

श्याम जो सुन्दर है

मदनमनोहर

मदन जो मनोहर है

जनकखेतिहर

जनक खेतिहर (खेती करनेवाला)

 विशेषणोभयपदकर्मधारय

पद

विग्रह

नीलपीत

नीला-पीला (दोनों मिले)

शीतोष्ण

शीत-उष्ण (दोनों मिले)

कृताकृत

किया-बेकिया

कहनी-अनकहनी

कहना-न-कहना

 विशेष्योभयपदकर्मधारय

पद

विग्रह

आम्रवृक्ष

आम्र है जो वृक्ष

वायसदम्पति

वायस है जो दम्पति

 उपमानकर्मधारय

पद

विग्रह

विद्युद्वेग

विद्युत के समान वेग

कुसुमकोमल

कुसुम के समान कोमल

लौहपुरुष

लोहे के समान पुरुष (कठोर)

शैलोत्रत

शैल के समान उत्रत

घनश्याम

घन-जैसा श्याम

उपमितकर्मधारय

पद

विग्रह

चरणकमल

चरण कमल के समान

अधरपल्लव

अधर पल्लव के समान

पद पंकज

पद पंकज के समान

मुखचन्द्र

मुख चन्द्र के समान

नरसिंह

नर सिंह के समान

 रूपकर्मधारय

पद

विग्रह

पुरुषरत्न

पुरुष ही है रत्न

मुखचन्द्र

मुख ही है चन्द्र

भाष्याब्धि

भाष्य ही है अब्धि

पुत्ररत्न

पुत्र ही है रत्न

 अव्ययीभाव समास

पद

विग्रह

दिनानुदिन

दिन के बाद दिन

भरपेट

पेट भरकर

निर्भय

बिना भय का

प्रत्यक्ष

अक्षि के सामने

बखूबी

खूबी के साथ

प्रत्येक

एक-एक

यथाशीघ्र

जितना शीघ्र हो

बेलाग

बिना लाग का

प्रत्युपकार

उपकार के प्रति

बेफायदा

बिना फायदे का

प्रतिदिन

दिन दिन

अनुरूप

रूप के योग्य

बेखटके

बिना खटके वे (बिन)

आजन्म

जन्म से लेकर

दिनोंदिन

कुछ (या दिन) ही दिन में

रातोंरात

रात-ही-रात में

गली-गली

प्रत्येक गली

यथानियम

नियम के अनुसार

बीचोंबीच

बीच ही बीच में

यथाविधि

विधि के अनुसार

यथासंभव

संभावना के अनुसार

रातभर

भर रात

अनुरूप

रूप के ऐसा

पल-पल

हर पल

प्रत्यंग

अंग-अंग

यथाशक्ति

शक्ति के अनुसार

उपकूल

कूल के समीप

निधड़क

बिना धड़क के

यथार्थ

अर्थ के अनुसार

मनमाना

मन के अनुसार

बेकाम

बिना काम का

आपादमस्तक

पाद से मस्तक तक

परोक्ष

अक्षि के परे

बेरहम

बिना रहम के

आमरण

मरण तक

यथाक्रम

क्रम के अनुसार

यथासमय

समय के अनुसार

एकाएक

अचानक, अकस्मात

यथोचित

जितना उचित हो

आजीवन

जीवन पर्यत/तक

भरपूर

पूरा भरा हुआ

प्रतिवर्ष

वर्ष-वर्ष/हर वर्ष

आजकल

आज और कल

यथास्थान

स्थान के अनुसार

व्यर्थ

बिना अर्थ के

अनुकूल

कुल के अनुसार

आसमुद्र

समुद्रपर्यन्त

बार-बार

हर बार

द्विगु कर्मधारय (समाहारद्विगु)

पद

विग्रह

त्रिभुवन

तीन भुवनों का समाहार

चवत्री

चार आनों का समाहार

त्रिगुण

तीन गुणों का समूह

अष्टाध्यायी

अष्ट अध्यायों का समाहार

पंचवटी

पाँच वटों का समाहार

दुअत्री

दो आनों का समाहार

त्रिफला

तीन फलों का समाहार

सतसई

सात सौ का समाहार

चतुर्भुज

चार भुजाओं का समूह

तिरंगा

तीन रंगों का समाहार

चतुर्मुख

चार मुखों का समूह

नवनिधि

नौ निधियों का समाहार

दोपहर

दो पहरों का समाहार

सप्ताह

सात दिनों का समूह

दुराहा

दो राहों का समाहार

त्रिकाल

तीन कालों का समाहार

नवग्रह

नौ ग्रहों का समाहार

पसेरी

पाँच सेरों का समाहार

त्रिपाद

तीन पादों का समाहार

त्रिलोक, त्रिलोकी

तीन लोकों का समाहार

चौराहा

चार राहों का समाहार

नवरत्न

नव रत्नों का समाहार

पंचपात्र

पाँच पात्रों का समाहार

चारपाई

चार पैरों का समाहार

अष्टसिद्धि

आठ सिद्धियों का समाहार

त्रिवेणी

तीन वेणियों का समूह

चवन्नी

चार आनों का समाहार

पंचतंत्र

पाँच तंत्रो का समाहार

त्रिनेत्र

तीनों नेत्रों का समूह

चतुर्वेद

चार वेदों का समाहार

उत्तरपदप्रधानद्विगु

पद

विग्रह

दुपहर

दूसरा पहर

पंचहत्थड़

पाँच हत्थड़ (हैण्डिल)

दुसूती

दो सूतोंवाला

शतांश

शत (सौवाँ) अंश

पंचप्रमाण

पाँच प्रमाण (नाप)

दुधारी

दो धारोंवाली (तलवार)

बहुव्रीहि (समानाधिकरणबहुव्रीहि)

पद

विग्रह

प्राप्तोदक

प्राप्त है उदक जिसे

पीताम्बर

पीत है अम्बर जिसका

निर्धन

निर्गत है धन जिससे

चौलड़ी

चार है लड़ियाँ जिसमें (वह माला)

दिगम्बर

दिक् है अम्बर जिसका

वज्रदेह

वज्र है देह जिसकी

दशमुख

दश है मुख जिसके

सतसई

सात सौ का समाहार

चतुर्वेद

चार वेदों का समाहार

कमलनयन

कमल के समान है नयन जिसके अर्थात विष्णु

गजानन

गज के समान आनन (मुख) वाला अर्थात गणेश

चक्रधर

चक्र धारण करने वाला अर्थात विष्णु

नीलकंठ

नीला है जो कंठ अर्थात शिव

बारहसिंगा

बारह हैं सींग जिसके वह पशु

लाठालाठी

लाठी से लड़ाई

कपीश

कपियों में है ईश जो- हनुमान

गोपाल

गो का पालन जो करे वह, श्रीकृष्ण

चतुरानन

चार है आनन जिनको वह, ब्रह्मा

जल्द

जल देता है जो वह बादल

मुरलीधर

मुरली को धरे रहे (पकड़े रहे) वह, श्रीकृष्ण

दत्तभोजन

दत्त है भोजन जिसे

जितेन्द्रिय

जीती है इन्द्रियाँ जिसने

मिठबोला

मीठी है बोली जिसकी (वह पुरुष)

चतुर्भुज

चार है भुजाएँ जिसकी

सहस्त्रकर

सहस्त्र है कर जिसके

लम्बोदर

लम्बा है उदर जिसका

गोपाल

वह जो, गौ का पालन करे

पंचपात्र

पाँच पात्रों का समाहार

त्रिलोचन

तीन है लोचन जिसके अर्थात शिव

गिरिधर

गिरि (पर्वत) को धारण करने वाला अर्थात श्री कृष्ण

घनश्याम

वह जो घन के समान श्याम है अर्थात श्रीकृष्ण

चतुर्मुख

चार है मुख जिसके, वह अर्थात ब्रह्मा

पंचानन

पाँच है आनन (मुँह) जिसके अर्थात वह देवता

महेश

महान है जो ईश अर्थात शिव

सरसिज

सर से जन्म लेने वाला

खगेश

खगों का ईश है जो वह गरुड़

चक्रपाणि

चक्र हो पाणि (हाथ) में जिसके वह विष्णु

जलज

जल में उत्पन्न होता है वह कमल

नीलाम्बर

नीला अम्बर या नीला है अम्बर जिसका वह, बलराम

वज्रायुध

वज्र है आयुध जिसका वह, इन्द्र

व्यधिकरणबहुव्रीहि

पद

विग्रह

शूलपाणि

शूल है पाणि में जिसके

वीणापाणि

वीणा है पाणि में जिसके

चन्द्रभाल

चन्द्र है भाल पर जिसके

चन्द्रवदन

चन्द्र है वदन पर जिसके

तुल्ययोग या सहबहुव्रीहि

पद

विग्रह

सबल

बल के साथ है जो

सदेह

देह के साथ है जो

सपरिवार

परिवार के साथ है जो

सचेत

चेत (चेतना) के साथ है जो

व्यतिहारबहुव्रीहि

पद

विग्रह

मुक्कामुक्की

मुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुई

डण्डाडण्डी

डण्डे-डण्डे से जो लड़ाई हुई

लाठालाठी

लाठी-लाठी से जो लड़ाई हुई

 प्रादिबहुव्रीहि

पद

विग्रह

बेरहम

नहीं है रहम जिसमें

निर्जन

नहीं है जन जहाँ

द्वन्द्व (इतरेतरद्वन्द्व)

पद

विग्रह

धर्माधर्म

धर्म और अधर्म

गौरी-शंकर

गौरी और शंकर

लेनदेन

लेन और देन

पापपुण्य

पाप और पुण्य

शिव-पार्वती

शिव और पार्वती  

देश-विदेश

देश और विदेश

हरि-शंकर

हरि और शंकर

अन्नजल

अन्न और जल

ऊँच-नीच

ऊँच और नीच

दूध-दही

दूध और दही

पति-पत्नी

पति और पत्नी

माता-पिता

माता और पिता

राजा-रानी

राजा और रानी

अपना-पराया

अपना और पराया

नर-नारी

नर और नारी

बाप-दादा

बाप और दादा

हार-जीत

हार और जीत

शीतोष्ण

शीत और उष्ण

दम्पति

जाया-पति

लाभालाभ

लाभ और अलाभ

लोटा-डोरी

लोटा और डोरी

भलाबुरा

भला और बुरा

सीता-राम

सीता और राम

देवासुर

देव और असुर

भात-दाल

भात और दाल

भाई-बहन

भाई और बहन

धनुर्बाण

धनुष और बाणा

आटा-दाल

आटा और दाल

गंगा-यमुना

गंगा और यमुना

जीवन-मरण

जीवन और मरण

बच्चे-बूढ़े

बच्चे और बूढ़े

राजा-प्रजा

राजा और प्रजा

सुख-दुःख

सुख और दुःख

गुण-दोष

गुण और दोष

पृथ्वी-आकाश

पृथ्वी और आकाश

यश-अपयश

यश और अपयश

ऊपर-नीचे

ऊपर और नीचे

इकतीस

एक और तीस

राग-द्वेष

राग और द्वेष

राधा-कृष्ण

राधा और कृष्ण

गाड़ी-घोड़ा

गाड़ी और घोड़ा

 समाहारद्वन्द्व

पद

विग्रह

रुपया-पैसा

रुपया-पैसा वगैरह

घर-द्वार

घर-द्वार वगैरह (परिवार)

नहाया-धोया

नहाया और धोया आदि

घर-आँगन

घर-आँगन वगैरह (परिवार)

नाक-कान

नाक-कान वगैरह

कपड़ा-लत्ता

कपड़ा-लत्ता वगैरह

 वैकल्पिकद्वन्द्व

पद

विग्रह

पाप-पुण्य

पाप या पुण्य

लाभालाभ

लाभ या अलाभ

थोड़ा-बहुत

थोड़ा या बहुत

भला-बुरा

भला या बुरा

धर्माधर्म

धर्म या अधर्म

ठण्डा-गरम

ठण्डा या गरम

 नञ समास

पद

विग्रह

अनाचार

न आचार

अनदेखा

न देखा हुआ

अन्याय

न न्याय

अनभिज्ञ

न अभिज्ञ

नालायक

नहीं लायक

अचल

न चल

अधर्म

न धर्म

अनेक

न एक

अपवित्र

न पवित्र

नास्तिक

न आस्तिक

अनुचित

न उचित

अज्ञान

न ज्ञान

अद्वितीय

जिसके समान दूसरा न हो

अगोचर

न गोचर

अजन्मा

न जन्मा

अनन्त

न अन्त

अनपढ़

न पढ़

अलौकिक

न लौकिक

 

 

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