ऊतक - Uttak - The Tissue

 ऊतक (Tissue)

कोशिकाओं का वह समूह, जिनकी उत्पत्ति, संरचना एवं कार्य समान हों, ‘ऊतक’ (Tissue) कहलाता है। ऊतकों का अध्ययन हिस्टोलाॅजी या औतकीय में किया जाता है। ये जन्तु एवं वनस्पति में भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं।


जन्तु-ऊतक:- (ANIMAL TISSUE)

ये 5 प्रकार के होते हैं :-


1. इपीथीलियल ऊतक (Ephithilial Tissue): यह मुख्यतया अंगों के वाह्य एवं आन्तरिक सतह पर पाये जाते हैं। ये कुछ ‘स्रावित ग्रन्थियाँ’ (Secratory Glands) जैसे- दुग्ध ग्रन्थियाँ (Mammalary Glands) स्वेद् ग्रन्थियाँ (Sweat Glands –पसीने की ग्रन्थियाँ ) आदि में भी पाये जाते हैं।


2. पेशीय ऊतक (Muscular Tissue): ये मुख्यतया मांसल भागों एवं खोखले अंगों की दीवारों का निर्माण कहते हैं। ये अंगों के आन्तरिक भाग में पाये जाते हैं। जैसे- हृदय (Heart) ऊतक, यकृत (Liver) ऊतक, वृक्क (Kidney) ऊतक आदि।


3. संयोजी ऊतक (Connective Tissue): ये 2 या 2 से अधिक ऊतकों को जोड़ने का कार्य करते हैं। जैसे- रक्त ऊतक, लिगामेन्ट (Ligament), कार्टिलेज (Cartilage), आदि।


4. तन्त्रिका ऊतक (Nervous Tissue): तन्त्रिका ऊतक की इकाई न्यूरान (Neuron) कहलाती है। तन्त्रिका ऊतक का मुख्य कार्य संवेदनाओं (Sensations) को ग्रहण कर मस्तिष्क तक पहुँचाना तथा मस्तिष्क द्वारा दिये गये आदेश को अभीष्ट अंग तक पहुँचाना होता है जो कि ‘न्यूरान्स’ (Neurons) के माध्यम से करता है। संवेदनाओं का चालन केमिको मैग्नेटिक वेव’ के रूप में होता है। इस केमिकल (रासायनिक पदार्थ) का नाम एसिटिलकोलीन (Acetylcholin) है।


5. जनन ऊतक (Reproductive Tissue) : ये जनन कोशिकाओं में पाये जाते हैं जो नर में ‘स्पर्म’ (Sperm) एवं मादा में ‘ओवा’ (Ova) का निर्माण करते हैं।



जंतुओं के शरीर में पाए जाने वाले ऊतकों को निम्न श्रेणियों में बाँटा गया है- उपकला ऊतक, संयोजी ऊतक, पेशी ऊतक एवं तंत्रिका ऊतक।


जंतुओं की बाहरी, भीतरी या स्वतंत्र सतहों पर उपकला ऊतक (Epithelial Tissue) पाये जाते हैं।


उपकला ऊतक में रुधिर कोशिकाओं का अभाव होता है तथा इनकी कोशिकाओं में पोषण विकसरण (Diffusion) विधि से लसीका द्वारा होता हैं


उपकला ऊतक त्वचा की बाह्य सतह, हृदय, फेफड़ा एवं वृक्क के चारों ओर तथा जनन ग्रंथियों की दीवार (wall) पर पाये जाते हैं।


उपकला ऊतक शरीर के आंतरिक भागों को सुरक्षा प्रदान करता है।


शरीर के सभी अंगों एवं अन्य ऊतकों को अपास में जोड़ने वाला ऊतक संयोजी ऊतक (Connective Tissue) कहलाता है।


संयोजी ऊतकों का प्रमुख कार्य शरीर के तापक्रम को नियंत्रित करना तथा मृत कोशिकाओं को नष्ट कर ऊतकों को नवीन कोशिकाओं की आपूर्ति करना है।


रुधिर एवं लसीका जैसे तरल ऊतक (Fluid tissue) संवहन में सहायक है।


शरीर की सभी ‘पेशियों’ का निर्माण करने वाला ऊतक पेशी ऊतक (Muscle Tissue) कहलाता है।


पेशी ऊतक अरेखित (Unstriped), रेखित (Striped) तथा हृदयक जैसे तीन प्रकारों में बँटे हुए हैं-


अनैच्छिक रूप से गति करनेवाले अंगों आहार नाल, मलाशय, मूत्राशय, रक्त वाहिनियाँ आदि में अरेखित ऊतक पाये जाते हैं।


अरेखित पेशियाँ उन सभी अंगों की गतियों को नियंत्रित करती हैं जो स्वयं गति करती हैं।


रेखित पेशियाँ शरीर के उन भागों में पायी जाती हैं, जो इच्छानुसार गति करती हैं। प्रायः इन पेशियों के एक या दोनों सिरे रूपांतरित होकर टेण्डन के रूप में अस्थियों से जुड़े होते हैं।


हृदयक पेशी केवल हृदय की दीवारों में पायी जाती हैं। हृदय की गति इन्हीं पेशियों की वजह से होती है।


मानरव शरीर में कुल 639 मांस-पेशियाँ पायी जाती हैं। ग्लूटियस मैक्सीमस (कूल्हे की मांसपेशी) मानव शरीर की सबसे बड़ी तथा स्टैपिडियस सबसे छोटी मांसपेशी हैं


जंतुओं में तंत्रिका तंत्र का निर्माण तंत्रिका उत्तक द्वारा होता है।


तंत्रिका उत्तक न्यूराॅन्स एवं न्यूरोग्लिया जैसे दो विशिष्ट प्रकार की कोशिकाओं द्वारा निर्मित होते हैं।


तंत्रिका उत्तक शरीर में होने वाली सभी प्रकार की अनैच्छिक एवं ऐच्छिक क्रियाओं को नियंत्रित करती हैं।


वनस्पति ऊतक (Plant Tissue)

ये 2 प्रकार के होते हैं :-


1. वर्धी ऊतक: यह सबसे तेज विभाजित होने वाला ऊतक होता है। ये पौधों के शीर्ष भाग (कार्य-ऊँचाई में वृद्धि), पाश्र्व भाग (कार्य- तने की मोटाई में वृद्धि) अन्तः सन्धि भाग (कार्य- शाखाओं का निर्माण) में पाये जाते हैं।


ये ऊतक हरित लवक की उपस्थिति में भोजन-निर्माण का भी कार्य करते हैं। ये भोजन-संचय (पैरनकाइमा ऊतक में) का भी कार्य करते हैं।


2. स्थाई ऊतक : जब वर्धी ऊतक की विभाजन क्षमता समाप्त हो जाती है, तो वे स्थाई ऊतक का निर्माण करते हैं। इसका मुख्य कार्य-भोजन निर्माण, भोजन-संचय और आन्तरिक सहायता (कोशिका को मजबूती प्रदान करना) है।



जटिल ऊतक (Complex Tissue) : एक से अधिक स्थाई ऊतक के मिलने पर ‘जटिल ऊतक’ का निर्माण होता है।


ये 2 प्रकार के होते हैं :-


जाइलम:- ‘जाइलम’ का मुख्य कार्य- जमीन से जल एवं खनिज लवण (Minerals) का अवशोषण कर पौधे के सम्पूर्ण अंग तक पहुँचाना होता है।


फ्लोयम:- ‘फ्लोयम’ का कार्य- पत्तियों द्वारा बनाये गये भोजन को पौधे की जड़ तक पहुँचाना होता है। ‘जाइलम’ गुरूत्वाकर्षण बल के विरूद्ध तथा ‘फ्लोयम’ गुरूत्वाकर्षण बल की ओर कार्य करता है।

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