कोशिका - koshika - The Cell

कोशिका (Cell)

सभी जीवधारी कोशिकाओं से बने होते हैं। इनमें से कुछ जीव एक कोशिका से बने होते हैं जिन्हें एककोशिका जीव कहते हैं, जबकि दूसरे, हमारे जैसे जीव अनेक कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं। बहुकोशिका जीवन कहते है। राबर्ट हुक ने 1665 में सर्वप्रथम कोर्क कोशिकाओं को देखा एवं उनका चित्र दिया यह चित्र साधारण सूक्ष्मदर्शी की मदद से देखी गई कोशिकाओं पर आधारित था।


1838 में जर्मनी के वनस्पति वैज्ञानिक मैथीयस स्लाइडेन ने बहुत सारे पौधों के अध्ययन के बाद पाया कि ये पौधे विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं, जो पौधों में ऊतकों का निर्माण करते हैं।


लगभग इसी समय 1839 में एक ब्रिटिश प्राणि वैज्ञानिक थियोडोर श्वान ने विभिन्न जंतु कोशिकाओं का अध्ययन किया।


स्लाइडेन व श्वान ने संयुक्त रुप से कोशिका सिद्धांत को प्रतिपादित किया। यद्यपि इनका सिद्धांत यह बताने में असफल रहा कि नई कोशिकाओं का निर्माण कैसे होता है। पहली बार रडोल्फ बिचों (1855) ने स्पष्ट किया कि कोशिका विभाजित होती है और नई कोशिकाओं का निर्माण पूर्व स्थित कोशिकाओं के विभाजन से होता है (ओमनिस सेलुल-इ सेलुला)।


इन्होंने स्लाइडेन व श्वान की कल्पना को रुपांतरित कर नई कोशिका सिद्धांत को प्रतिपादित किया। वर्तमान समय के परिप्रेक्ष्य में कोशिका सिद्धांत निम्नवंत हैः


1 सभी जीव कोशिका व कोशिका उत्पाद से बने होते हैं।

2 सभी जीवों की बुनियादी इकाई है कोशिकाओं।

3 सभी कोशिकाएं पूर्व स्थित कोशिकाओं से निर्मित होती हैं।


प्रत्येक कोशिका के भीतर एक सघन झिल्लीयुक्त संरचना मिलती है, जिसको केंद्रक कहते हैं।


केंद्रक (Nucleus)

कोशिकीय अंगक केंद्रक की खोज सर्वप्रथम रार्बट ब्राउन ने सन् 1831 में की थी।केंद्रक आवरण दो समानातंर झिल्लियों से बना होता है, जिनके बीच 10 से 50 नैनोमीटर का रिक्त स्थान पाया गया है जिसे परिकेंद्रकी अवकाश कहते हैं।


अंतरावस्था केंद्रक के ढीली-ढाली अस्पष्ट न्यूक्लियों प्रोटीन तंतुओं की जालिका मिलती है जिसे क्रोमोटीन कहते हैं। अवस्थाओं व विभाजन के समय केंद्रक के स्थान पर गुणसूत्र संरचना दिखाई पड़ती है। क्रोमोटीन में डीएनए तथा कुछ क्षारीय प्रोटीन मिलता है जिसे हिस्टोन कहते हैं, इसके अतिरिक्त उनमें इतर हिस्टोन व आरएनए भी मिलता है।


केद्रक में आनुवंशिक पदार्थ डीएनए होता है। जिस कोशिका में झिल्लीयुक्त केंद्रक (Nuclear Membrane) होता हैं, उसे येकैरियोट (Eukaryotic) व जिसमें झिल्लीयुक्त केंद्रक नही मिलता उसे प्रोकैरियाट (Prokaryotic) कहते है।


यूकैरियोटिक कोशिका में केद्रक के अतिरिक्त अन्य झिल्लीयुक्त विभिन्न संरचनाएं मिलती हैं, जो कोशिकांग (Organelles) कहलाती है जैसे- अंतप्रद्रवयी जालिका (Endoplasmic reticulum ) सूत्र कणिकाएं (Mitochondria) सूक्ष्य (Microbody) गाल्जीसामिश्र लयनकाय (Lysosome) व रसधानी प्रोकैरियोटिक कोशिका में झिल्लीयुक्त कोशिकांग का अभाव होता है।


यूकैरियोटिक व प्रोकैरियोटिक दोनों कोशिकाओं में झिल्ली रहित अंगक राइबोसोम मिलते हैं।

कोशिका के भीतर राइबोसोम केवल कोशिका द्रव्य में ही नही; बल्कि दो अंगको-हरित लवक (Chloroplast) (पौधों में) व सूत्र कणिका (Mitochondria) में व खुरदरी अंतर्द्रव्यी जालिका में भी मिलते हैं।


कोशिकाएं माप, आकार व कार्य की दृष्टि से काफी भिन्न होती है। उदाहरणार्थ-सबसे छोटी माइकोप्लाज्मा 0.3 µm (माइक्रोमीटर) लंबाई की, जबकि जीवाणु (बैक्टीरिया) में 3 से 5 µm (माइक्रोमीटर) की हैं।


प्रोकैरियोटिक कोशिकाएं

प्रोकैरियोटिक कोशिकाएं, जीवाणु, नीलहरित शैवाल, माइकोप्लाज्मा और प्ल्यूरों निमोनिया सम

जीव (PPLO) मिलते हैं।


कोशिका में साइटोप्लाज्मा एक तरल मैट्रिक्स के रुप में भरा रहता है। इसमें कोई स्पष्ट विभेदित केंद्रक नहीं पाया जाता है।


आनुवंशक पदार्थ मुख्य रुप से नग्न व केंद्रक झिल्ली द्वारा परिबद्व नहीं होता है। जिनोमिक डीएनए के अतिरिक्त (एकल गुणसूत्र/गोलाकार डीएनए) जीवाणु में सूक्ष्म डीएनए वृत जिनोमिक डीएनए के बाहर पाए जाते हैं। इन डीएनए वृतो को प्लाज्मिड कहते हैं।


प्रोकैरियोटिक की यह विशेषता कि उनमें कोशिका झिल्ली एक विशिष्ट विभेदित आकार में मिलती है। जिसे मीसोसोम कहते है। ये तत्व कोशिका झिल्ली अंतर्वतन होते है।


कुछ प्रोकैरियोटिक जैसे नीलरहित जीवाणु के कोशिका द्रव्य में झिल्लीमय विस्तार होता है। जिसे वर्णकी लवक कहते हैं। इसमें वर्णक पाए जाते हैं।


जीवाणु कोशिकाएं चलायमान अथवा अचलायमान होती हैं। यदि वह चलायमान हैं तो उनमें कोशिका भिती जैसी पतली मिलती हैं। जिसे कशाभिका कहते हैं जीवाणु कशाभिका (फ्लैजिलम) तीन भागों में बँटा होता है-तंतु, अंकुश व आधारीय शरीर। तंतु, कशाभिका का सबसे बड़ा भाग होता है और यह कोशिका सतह से बाहर की ओर फैला होता है।


राइबोसोम

जार्ज पैलेड (1953) ने इलेक्ट्राॅन सूक्ष्मदर्शी द्वारा सघन कणिकामय संरचना राइबोसोम को सर्वप्रथम देखा था।


प्रोकैरियोटिक में राइबोसोम कोशिका की जीवद्रव्य झिल्ली से जुड़े होते है। ये 15 से 20 नैनोमीटर आकार की होती हैं और दो उप इकाइयों में 50S व 30S की बनी होती हैं, जो आपस में मिलकर 70 S प्रोकैरियोटिक राइबोसोम बनाते हैं। राइबोसोम के ऊपर प्रोटीन संश्लेषित होती है।


राइबोसोम अंतर्द्रव्यी जालिका के बाहरी सतह पर चिपके रहते हैं। जिस अंतर्द्रव्यी जालिका के सतह पर यह राइबोसोम मिलते हैं, उसे खुरदरी अंतर्द्रव्यी जालिका कहते हैं। राइबोसोम की अनुपस्थिति पर अंतर्द्रव्यी जालिका चिकनी लगती है।


चिकनी अंतर्द्रव्यी जालिका प्राणियों में लिपिड़ संश्लेषण के मुख्य स्थल होते हैं। लिपिड की भाँति स्टीरायडल हार्मोन चिकने अंतर्द्रव्यी जालिका में होते हैं।


अंतर्विष्ट पिंड

प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में बचे हुए पदार्थ कोशिकाद्रव्य में अंतर्विष्ट पिंड के रुप में संचित होते हैं। झिल्ली द्वारा घिरे नहीं होते एवं कोशिकाद्रव्य में स्वतंत्र रुप से पड़े रहते हैं, उदाहरणार्थ-फॉस्फेट कणिकाएं, साइनोफाइसिन कणिकाएं और ग्लाइकोजन (Glycogen granules) कणिकाएं। गैस रसधानी नील रहित, बैंगनी और हरी प्रकाश-संश्लेषी जीवाणुओं में मिलती है।


कोशिका भिती

शैवाल की कोशिका भिती सेलुलोज, गैलेक्टेन्स, मैनान्स व खनिज जैसे कैल्सियम

कार्बोनेट की बनी होती है, जबकि दूसरे पौधों में यह सेलुलोज, हेमीसेलुलोज, पेक्टीन व प्रोटीन की बनी होती है।

मध्यपटलिका मुख्यतः कैल्सियम पेक्टेट की बनी सतह होती है।

कोशिकायें आपस में प्लामोडेस्मेटा से जुड़ी रहती है।


यूकैरियोटिक कोशिकाएं

यूकैरियोटिक कोशिकाओं में झिल्लीदार अंगकों की उपस्थिति के कारण कोशिकाद्रव्य विस्तृत कक्षयुक्त प्रतीत होता है।


प्राणी कोशिका

प्राणी कोशिकाओं में तारकाय (Centriole) मिलता है जो लगभग सभी पादप कोशिकाओं में अनुपस्थित होता है। प्राणी कोशिका में कोशिका भिती (Cell Wall) का अभाव होता है।


कोशिका झिल्ली (PLASMA MEMBRANE)

वर्ष 1950 में इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की खोज के बाद कोशिका झिल्ली की विस्तृत संरचना का ज्ञान संभव हो सका है।


कोशिकाओं लिपिड की बनी होती है, जो दो सतहों में व्यवस्थित होती है। लिपिड झिल्ली के अंदर व्यवस्थित होते हैं, जिनका धु्रवीय सिरा बाहर की ओर व जल भीरु पुच्छ सिरा अंदर की ओर होता है।


विभिन्न कोशिकाओं में प्रोटीन व लिपिड का अनुपात भिन्न-भिन्न होता है। मनुष्य की रुधिराणु (इरीथ्रोसाइट) की झिल्ली में लगभग 52 प्रतिशत प्रोटीन व 40 प्रतिशत लिपिड मिलता है। झिल्ली के पाए जाने वाले प्रोटीन को अलग करने की सुविधा के आधार पर दो अंगभूत व परिधीय प्रोटीन भागों में विभक्त कर सकते हैं। परिधीय प्रोटीन झिल्ली की सतह पर होता है, जबकि अंगभूत प्रोटीन आंशिक या पूर्णरुप से झिल्ली में धंसे होते है।


अंतः झिल्लिा तंत्र

इस तंत्र के अंतर्गत अंतर्द्रव्यी जालिका, गॉल्जीकाय, लयनकाय, व रसधानी अंग जाते हैं। सूत्रकणिका (माइटोकॉन्ड्रिया), हरितलवक व परआॅक्सीसोम के कार्य उपरोक्त अंगों से सबंधित नही होते, इसलिए इन्हें अंतः झिल्लिका तत्र के अंतर्गत नहीं रखते हैं।


अंतर्द्रव्यी जालिका (ऐन्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम)

इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी से अध्ययन के पश्चात् यह पता चला कि यूकैरियोटिक कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में चपटे, आपस में जुड़े, थैली युक्त छोटी नलिकावत जालिका तंत्र बिखरा रहता है जिसे अंतर्द्रव्यी जालिका कहते है इस तंत्र के अन्तर्गत अंतर्द्रव्यी जालिका, गल्जीकाय, लयनकाय व रसधानी अंग आते है।


गॉल्जी उपकरण

केमिलो गॉज्ली (1898) ने पहली बार केंद्रक के पास घनी रंजित जालिकावत संरचना तंत्रिका कोशिका में देखी। इनका व्यास 0.5 माइक्रोमीटर से 1.0 माइक्रोमीटर होता है।


लयनकाय (लाइसासोम)

यह झिल्ली पुटिका संरचना होती है जो संवेष्टन विधि द्वारा गाॉल्जीकाय में बनते हैं। पृथकीकृत लयनकाय पुटिकाओं में सभी प्रकार की जल-अपघटकीय एंजाइम (जैसे-हाइड्रोलेजेज लाइपेसेज, प्रोटोएसेज व कार्बोडाइड्रेजेज) मिलते हैं जो अम्लीय परिस्थितियों में सर्वाधिक सक्रिय होते हैं। ये एंजाइम कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, लिपिड न्यूक्लिक अम्ल आदि के पाचन में सक्षम हैं।


रसधानी (वैक्यौल)

कोशिकाद्रव्य में झिल्ली द्वारा घिरी जगह को रसधानी कहते हैं। इनमें पानी, रस, उत्सर्जित पदार्थ व अन्य उत्पाद जो कोशिका के लिए उपयोगी नहीं हैं, भी इसमें मिलते हैं। रसधानी एकल झिल्ली से आवृत होती है जिसे टोनाप्लास्ट कहते हैं।


सूत्रकणिका (माइटोकोंड्रिया)

यह तशतरीनुमा बेलनाकार आकृति की होती है जो 1.0-4.1 माइक्रोमीटर लंबी व 0.2-1 माइक्रोमीटर (औसत 0.5 माइक्रोमीटर) व्यास की होती है। भीतरी कक्ष को आधात्री (मैट्रिक्स) कहते हैं। बाह्मकला सूत्रकणिका की बाह्म सतत सीमा बनाती है। इसकी अंतझिल्ली कई आधात्री की तरफ अंतरवलन बनाती है जिसे क्रिस्टी (एक वचन-क्रिस्टो) कहते हैं। सूत्रकणिका के आधात्री में एकल वृताकार डीएनए अणु व कुछ आरएनए राइबोसोम्स (70ैद्ध तथा प्रोटीन संश्लेषण के लिए आवश्यक घटक मिलते हैं।


लवक (प्लास्टिड)

लवक सभी पादप कोशिकाओं एवं कुछ प्रोटोजोआ जैसे यूग्लिना में मिलते हैं। ये आकार में बड़े होने के कारण सूक्ष्मदर्शी से आसानी से दिखाई पड़ते है। इसमें विशिष्ट प्रकार के वर्णक मिलने के कारण पौधे भिन्न-भिन्न रंग के दिखाई पड़ते हैं। विभिन्न प्रकार के वर्णकों के आधार पर लवक कई तरह के होते हैं जैसे-हरित लवक, वर्णीलवक व अवर्णीलवक।


हरित लवक

हरित लवकों में पर्णहरित वर्णक व केरोटिनॉइड वर्णक मिलते हैं जो प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक प्रकाशीय ऊर्जा को संचित रखने का कार्य करते हैं। वर्णीलवकों में वसा विलेय केरोटिनॉइड वर्णक जैसे-केरोटीन, जैंथोफिल व अन्य दूसरे मिलते हैं। मंडलवक में मंड के रुप में कार्बोहाइड्रेट संचित होता हैं; जैसे-आलूः तेल वलक में तेल व वसा तथा प्रोटीन लवक में प्रोटीन का भंडारण होता हैं। हरित लवकों की लंबाई (5-10 माइक्रोमीटर) व चैड़ाई (2-4 माइक्रोमीटर) के होते हैं।


साइटोपंजर (साइटोस्केलेटन)

प्रोटीनयुक्त विस्तृत जालिकावत तंतु जो कोशिकायुक्त में मिलता है उसे साइटोपंजर कहते हैं।

पक्ष्माभ व कशाभिका (सीलिया तथा फ्लैजिला) पक्ष्माभिकाएं (एकवचन-पक्ष्माभ) व कशाभिकाएं (एक वचन-कशाभिका) रोम सदृश कोशिका झिल्ली पर मिलने वाली अपवृद्वि है।

इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी से पता चलता है कि पक्ष्माभ व कशाभिका जीवद्रव्यझिल्ली से ढके होते हैं। इनके कोर को अक्षसूत्र कहते हैं। जो कई सूक्ष्म नलिकाओं का बना होता है जो लंबे अक्ष के समानांतर स्थित होते हैं। अक्षसूत्र के केंद्र में एक बड़ा सूक्ष्म नलिका मिलती है अक्षसूत्र की सूक्ष्मनलिकाओं की इस व्यवस्था को 9+2 प्रणाली कहते हैं।


तारककाय व तारकक्रेद्र (सन्ट्रोसोम तथा सैन्ट्रीऔल)

तारककाय वह अंगक है जो दो बेलनाकार संरचना से मिलकर बना होता है, जिसे तारकक्रेद्र कहते है। तारककेद्र का अग्र भीतरी भाग प्रोटीन का बना होता है जिसे धुरी कहते हैं, यह परिधीय त्रिक के नलिका से प्रोटीन से बने अरीय दंड से जुड़े होते हैं। तारककेद्र पक्ष्माभ व कशाभिका व आधारीकाय बनाता है और तर्कुतंतु जंतु कोशिका विभाजन के उपरांत तर्कु उपकरण बनाता है।


तारककाय व तारकक्रेद्र (सन्ट्रोसोम तथा सैन्ट्रीऔल)

तारककाय वह अंगक है जो दो बेलनाकार संरचना से मिलकर बना होता है, जिसे तारकक्रेद्र कहते है। तारककेद्र का अग्र भीतरी भाग प्रोटीन का बना होता है जिसे धुरी कहते हैं, यह परिधीय त्रिक के नलिका से प्रोटीन से बने अरीय दंड से जुड़े होते हैं। तारककेद्र पक्ष्माभ व कशाभिका व आधारीकाय बनाता है और तर्कुतंतु जंतु कोशिका विभाजन के उपरांत तर्कु उपकरण बनाता है।

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