कश्मीर समस्या के लिए जिम्मेदार कौन हैं | kashmir samasya ke liye jimmedaar kaun hain | Who is responsible for Kashmir problem

लेख का श्रेय - विनय झा

Credit of Post - Vinay Jha

कश्मीर समस्या के असली कर्णधार थे महाराज हरी सिंह जी | उनके गुरु सन्तदेव जी ने उनको सिखा दिया कि लाहौर से लेह तक के विशाल साम्राज्य के वे स्वतन्त्र सम्राट बनने जा रहे हैं | इसी कारण से माउंटबैटन और पटेल जी के प्रस्तावों को ठुकराकर भारत में मिलने से इनकार कर दिया | बाद में माउंटबैटन ने कहा कि यदि वे भारत में नहीं मिलना चाहते तो पाकिस्तान में मिल जाएँ, यह भी ठुकराया | 1947 के मार्च में लाहौर के मुसलमानों ने हिन्दुओं का कत्लेआम आरम्भ किया, शीघ्र ही पूरे पंजाब के मुस्लिम गाँवों में हिंसा फैल गयी जिसमें विश्वयुद्ध से लौटे भूतपूर्व मुस्लिम सैनिक अग्रणी भूमिका निभा रहे थी | सुनियोजित तरीके से हिन्दुओं का सफाया किया जा रहा था, जिसकी आज्ञा जिन्ना ने “डायरेक्ट एक्शन” के नाम से दी थी| जम्मू में 160 हज़ार रिफ्यूजी हिन्दुओं के आने से वहां के हिन्दुओं में भी हिंसा भड़की और मुसलमानों पर हमला होने लगा, जिसमे डोगरा महाराज के अधिकारियों और सैनिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और हथियार दिए | लगभग तीन लाख मुसलमान जम्मू क्षेत्र से भागकर पाकिस्तान चले गए |

मुस्लिम स्रोत बताते हैं कि डोगरा महाराज ने अपनी फ़ौज और पुलिस से मुस्लिम सैनिकों को निकाल दिया जिन्होंने बाद में कश्मीर पर हमले में पाकिस्तान का साथ दिया | किन्तु काशी विद्वत परिषद् से जुड़े पण्डित ने मुझे बताया था कि काशी विद्वत परिषद् ने महाराज के प्रस्ताव का उत्तर दिया था कि मुसलमान की घरवापसी सम्भव नहीं है, जिसके बाद राजपुरोहित ने आत्मदाह किया और उनकी फ़ौज के मुस्लिम सिपाही पाकिस्तान चले गए | सम्भव है महाराज ने शर्त रखी होगी कि जो मुस्लिम सैनिक हिन्दू बन जायेंगे उन्हीं को सेना में रखा जाएगा | किन्तु इतना सत्य है कि 1947 में उनके फ़ौज से मुसलमानों को या तो निकाला गया या वे निकल गए |

इससे अधिक महत्वपूर्ण यह तथ्य है कि जब पाकिस्तान समर्थित कबीलाइयों और अन्य पाकिस्तानियों ने कश्मीर घाटी पर आक्रमण किया तो शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में घाटी के मुसलमानों ने पाकिस्तानियों से लोहा लिया, किन्तु महाराज गाड़ियों के काफिलों में चल सम्पत्ति लेकर जम्मू भाग गए | शेख अब्दुल्ला को महाराज ने पहले से जेल में डाल रखा था, किन्तु पाकिस्तानी खतरे को देखकर 29-9-1947 को रिहा कर दिया जिसके 26 दिन बाद पाकिस्तानियों ने आक्रमण किया | भारत में मिलने के साथ ही शेख अब्दुल्लाह को महाराज ने प्रशासन का प्रमुख मान लिया | शेख अब्दुल्लाह के स्वयंसेवकों ने रात-दिन श्रीनगर की चौकसी में पेट्रोलिंग की, तब भारतीय सेना घाटी में पंहुची भी नहीं थी | उस मिलिशिया को शेख अब्दुल्लाह भारतीय सेना की वापसी के बाद कश्मीर की सेना बनाना चाहते थे, जो Instrument of accession का उल्लंघन था | शेख अब्दुल्लाह नहीं चाहते थे कि कश्मीर में भारतीय सेना रहे | अतः 1953 में नेहरु ने उन्हें नजरबन्द किया और मिलिशिया को भंग कराया | 1972 में इन्दिरा जी ने उस मिलिशिया को “जम्मू एंड कश्मीर लाइट इन्फेंट्री” की मान्यता दी, क्योंकि पाकिस्तानियों को श्रीनगर में घुसने से उसी मिलिशिया ने रोका था |

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